बिलासपुर। गुरुघासीदास केन्द्रीय विवि के दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमित करने के मामले में विवि द्वारा पेश सभी एसएलपी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी । इससे पहले हाईकोर्ट की डीविजन बेंच ने अपील खारिज की थी । सुप्रीम कोर्ट की डीविजन बेंच ने कहा कि, हमें उच्च न्यायालय के निर्देश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखाई देता है ।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत मिश्रा की डीबी ने सुनवाई करते हुए कहा कि दो दशकों से अधिक समय से काम कर रहे दैनिक वेतनभोगियों को नियमित करने के मामले में, हमें उच्च न्यायालय के निर्देश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है। तदनुसार विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज की जाती हैं। निजी उत्तरदाताओं की ओर से इस अदालत में एडवोकेट सुश्री दीपाली पांडे उपस्थित हुईं । शीर्ष कोर्ट ने कहा कि लंबित आवेदन(आवेदनों), यदि कोई हो, जिसमें पक्षकार या हस्तक्षेप आवेदन भी शामिल हैं, उन्हें क्लोज कर दिया जायेगा ।
पूरी तरह विधिक कार्रवाई
इससे पहले सिंगल बेंच के निर्णय को बरकरार रख हाईकोर्ट डीबी ने माना था कि, राज्य शासन के आदेश पर इन कर्मचारियों को नियमित करना पूरी तरह विधिक कार्रवाई थी । गुरु घासीदास विवि में वर्षों से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को राज्य शासन उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश 22 अगस्त 2008 के अनुसार तत्कालीन कुलपति प्रो एल एम् मालवीय ने 26अगस्त 2008को नियमितीकरण के आदेश जारी कर किये थे। इससे पूर्व विवि कार्य परिषद् की बैठक भी 22 जुलाई 2008 को हो चुकी थी, इसमें भी कर्मचारियों को नियमित करने का प्रस्ताव पारित किया गया था । इस कार्रवाई से पहले ही राज्य शासन 5 मार्च 2008 को तृतीय व चतुर्थ वर्ग कर्मियों को नियमित करने एक सर्कुलर जारी कर चूका था । इस बीच 15 जनवरी 2009 को यह विवि केन्द्रीय विवि बन गया । इसके साथ ही यहाँ केन्द्रीय विवि एक्ट 2009 लागू हो गया । यह शर्त भी लागू हुई कि , जैसे कर्मचारी लाये गये हैं विसे ही रखे जायेंगे । सेवा शर्तों को बिना राष्ट्रपति की अनुमति के बदला नहीं जायेगा ।
नियमितीकरण रद्द
इस बीच मार्च 2009 में विवि ने इन कर्मियों को दैनिक वेतन भोगी का ही वेतन दिया । इसे मो हारून ,
मेलाराम व् अन्य ने अधिवक्ता दीपाली पाण्डेय के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी । इस पर सुनवाई कर सिंगल बेंच ने पक्ष में आदेश दिया था । इसके खिलाफ विवि ने पहले हाईकोर्ट डीबी में अपील की । चीफ जस्टिस व जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की डीविजन बेंच ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की अधिवक्ता दीपाली पाण्डेय के पूर्व तर्क को स्वीकार किया था कि,विवि ने बिना नोटिस दिए नियमितीकरण रद्द किया था। हाई कोर्ट की डीबी से विवि की अपील खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विवि ने एसएलपी पेश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी विवि की एसएलपी को खारिज कर दिया है।
