वैवाहिक जीवन में जब तक घटना से ठीक पहले  कोई असाधारण परिस्थिति नहीं दर्शाती, तो आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का अपराध नहीं बनता-हाई कोर्ट

00 बहू के खुदकुशी करने पर पति व ससुर को 7 वर्ष कैद की सजा हुई थी

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वैवाहिक जीवन में ससुराल पक्ष द्वारा सामान्य झगड़े या अपमानजनक टिप्पणियाँ, जब तक वे घटना से ठीक पहले की कोई असाधारण परिस्थिति नहीं दर्शातीं, भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण (abetment) का अपराध सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं मानी जा सकतीं।

न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु ने यह टिप्पणी एक मामले में पारित निर्णय में की, जिसमें मृतका के पति और ससुर को रायपुर की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा दोषी ठहराए जाने के विरुद्ध अपील दायर की गई थी। निचली अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 306/34 के

अंतर्गत सात वर्ष के सश्रम कारावास और ₹1,000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

31 दिसंबर 2013 को घटित हुआ, जब मृतका को रायपुर स्थित अस्पताल में जलने की गंभीर अवस्था में भर्ती कराया गया था। 5 जनवरी 2014 को उसकी मृत्यु हो गई। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि मृतका ने अपने ऊपर केरोसिन डालकर आत्महत्या इसलिए की क्योंकि उसके पति और ससुर उसे लगातार अपमानित करते थे और चरित्र पर शंका करते थे। मृतका द्वारा दिये गए मृत्युपूर्व कथन (डाइंग डिक्लेरेशन), जिसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था, में उसने स्वयं पर केरोसिन डालकर आग लगाने की बात स्वीकार की।

अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता  अनुजा शर्मा ने तर्क दिया कि घटना से ठीक पहले किसी भी प्रकार की तत्काल उकसाने वाली या उत्प्रेरक बात नहीं हुई थी, जो आत्महत्या के लिए कानूनी रूप से आवश्यक मानी जाती है। तर्क रखा कि अभियोजन पक्ष आत्महत्या के लिए आवश्यक दुष्प्रेरण सिद्ध नहीं कर पाया। मृतक की घटना से 12 वर्ष पूर्व विवाह हुआ था। कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर निचली अदालत के निर्णय को रद्द किया है।

kamlesh Sharma

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