हेडकांस्टेबल को मौत के बाद हाई कोर्ट से न्याय मिला
00 कोर्ट ने सेवा समाप्त करने के आदेश को रद्द किया
000 विधिक वारिसों को समस्त सेवानिवृत्त देयकों का हकदार ठहराया
बिलासपुर। हाई कोर्ट ने हेडकांस्टेबल के खिलाफ चलाये गए संयुक्त जांच में सक्षम प्राधिकारी द्वारा छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण ,नियंत्रण एवं अपील) नियम 1996 के नियम 18 का पालन नहीं किये जाने पर सेवा समाप्त करने के आदेश को रद्द किया है। याचिकाकर्ता यदि जीवित होता तो 2014 से सेवानिवृत्त आयु प्राप्त करने तक सभी रितरमेंटल बेनिफिट्स प्राप्त करने का हकदार होता। जून 2020 में उनका निधन होने के कारण उनके विधिक वारिस पत्नी, पुत्र व पुत्री सेवानिवृत्त देयक प्राप्त करने के हकदार है।
अलेक्सिस मिंज पुलिस आरक्षी केंद्र महासमुंद में हेडकांस्टेबल के पद में पदस्थ थे। उनका कमांड गार्ड थे। उनको चार होम गार्ड को कमांड करना था। 24 जनवरी 2013 को उन्होंने गणतंत्र दिवस समारोह के लिए 4 होम गार्ड्स की ड्यूटी मिनी स्टेडिय में सुरक्षा हेतु तैनात कर चले गया। उनके जाने के बाद सुरक्षा में तैनात एक होम गार्ड ने गोली चला दी। इससे कांस्टेब नरेंद्र यादव की मौत हो गई। घटना की जानकारी मिलते ही वे मौके में पहुचे व घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दी। मामले में उन्हें 3 फरवरी 2013 को चार्जशीट दिया गया। इसमें रायफल व बारुद के रखरखाव में लापरवाही का आरोप लगाया गया। इसके कारण एक रायफल व 20 कारतूस खो गया। इसके साथ ही संयुक्त जांच कराई गई। जांच उपरांत सेवा समाप्त करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ उन्होंने सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपील पेश की। अपील खारिज होने पर उन्होंने 2014 हाई कोर्ट में याचिका पेश की। याचिका में कहा गया कि मामले में कठोर दंड देने से पहले सीसीए नियम 1996 के नियम 18 का पालन नहीं किया गया। याचिका के लंबित रहने के दौरान उनका जून 2020 को निधन हो गया। याचिकाकर्ता के निधन होने पर पत्नी लोकड़िया मिंज, पुत्र संजय मिंज व पुत्री ने मामले को आगे चलाया। जस्टिस गौतम भादुड़ी की कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने सुनवाई उपरांत अपने आदेश में कहा कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा छत्तीसगढ़ सिविल सेवा(वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1996 के नियम 18 के तहत पारित संयुक्त जांच आदेश का पालन नहीं किया गया, इसकारण से जांच दूषित है। कोर्ट ने सेवा समाप्त करने के आदेश को रद्द किया है साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा याचिकाकर्ता ने जब याचिका पेश की तब उनकी आयु 56 वर्ष रहा वे जीवित होते तो सेवानिवृत्त आयु प्राप्त करने तक सभी सेवानिवृत्त देयक प्राप्त करने के हकदार होते। इनका निधन हो गया है, इस स्थिति उनके विधिक वारिस सभी लाभ प्राप्त करने के हकदार है।
