हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
स्त्रीधन वापस नहीं करने वाले पति को हाईकोर्ट ने दंडित किया
०० दो माह के अंदर 28 तोला सोना एवं 10 हजार रूपये जुर्माना देने का निर्देश
बिलासपुर। जस्टिस नरेन्द्र कुमार व्यास ने स्त्रीधन वापस नहीं देने के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया। कोर्ट ने कहा स्त्रीधन विवाहित महिला की संपत्ति है और वह अपनी इच्छा अनुसार इसका उपयोग कर सकती है। भले ही यह पति व ससुराल वालों के पास रहता हो। हाईकोर्ट ने पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए पति को धारा 405 को दोषी मानते हुए दो माह के अंदर 28 तोला सोना एवं 10 हजार रूपये जुर्माना देने का निर्देश दिया है। कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने पर आरोपी को तीन माह का साधारण कारावास भुगतना होगा।
अपीलकर्ता श्रीमती कविता मूर्ति की 3 नवंबर 1995 को भिलाई निवासी वेंकटरमन मूर्ति के साथ कुंदन पैलेस रायपुर में विवाह हुआ था। शादी के बाद वह ससुराल में रहने लगी। कुछ दिनों बाद पति अन्य लोग उसे यातना देकर प्रताड़ित करने लगे। पत्नी के पास उसे छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होने के कारण 19 मार्च 1996 की मध्य रात्रि घर छोड़कर चली गई। मानसिक पीड़ा की अवस्था में उसने स्त्रीधन आभूषण सोना, चांदी अन्य वस्तु छोड़ दी थी। इसके बाद पीड़िता ने रायपुर आकर पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत अपराध करने का आरोप तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3 व 4 के तहत महिला थाना में रिपोर्ट लिखाई। पुलिस ने प्रकारण दर्ज किया।
पुलिस ने जांच शुरू की इस बीच, 7 दिसंबर 1997 को पति ने पत्नी को एक कानूनी नोटिस भेजा। । दूसरी ओर अपीलकर्ता पत्नी ने पति को 30 मई 1998 को नोटिस भेजकर स्त्रीधन वापस करने की मांग की। इसमें स्त्रीधन की सूची महिला थाना रायपुर में प्रस्तुत किया गया। पीड़िता पत्नी ने धारा 200 के तहत न्यायालय में परिवाद पेश किया। न्यायिक मजिस्ट्रेट रायपुर ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद आरोपी पति को दोषमुक्त कर दिया। इसके खिलाफ पत्नी कविता ने हाईकोर्ट में अपील पेश की। अपील में कहा गया कि स्त्रीधन संपत्ति आरोपी व्यक्ति के हाथों में रहती है जब तक कि उसे वापस नहीं कर दिया जाता, तब तक आपराधिक विश्वासघात जारी रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया है कि 2003 में पारिवारिक न्यायालय सिकंदराबाद द्बारा पारित निर्णय जिसमें अपीलकर्ता ने अपराध साबित कर दिया है। इस विषय पर उपलब्ध साक्ष्य और कानून से यह स्पष्ट है कि स्त्रीधन विवाहित महिला की संपत्ति और वह अपने अनुसार इसका उपयोग कर सकती है। सुविधानुसार और पति और ससुराल वालों को ही जिम्मेदारी सौंपी जाती है स्त्रीधन वापसी की मांग की जाती है लेकिन वापसी नहीं की जाती है तो अपराध के तहत भारतीय दंड संहिता
की धारा 405 लागू होती है। जस्टिस नरेन्द्र कुमार व्यास ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि यह स्पष्ट है कि सोने के आभूषण अपीलकर्ता ने विवाह के समय पहने थे और रसीदें भी थीं ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया गया। अपीलकर्ता 19 मार्च 1996 को रात में भयावह स्थिति में वैवाहिक घर से निकली थी, इसलिए, यह संभव नहीं है ऐसी स्थिति में उसे सोने-चांदी के आभूषण ले जाने की अनुमति नहीं थी। ये वे परिस्थितियाँ हैं जिनसे यह सिद्ध हो गया कि सोना उनके पास था। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी करने के आदेश को निरस्त करते हुए पति को धारा 4०5 का दोषी माना है। इसके साथ कोर्ट ने दो माह के अंदर पति को 28 तोला सोना एवं 10 हजार रूपये जुर्माना देने का आदेश दिया है। आदेश का पालन नहीं होने पर तीन माह का साधारण कारावास भुगतना होगा।
०० कोर्ट ने सजा के संबंध में कहा
पति को भारतीय दंड संहिता की धारा 405 के अंतर्गत दोषी ठहराया जा सकता है। सजा के सवाल पर, चूंकि शिकायत 17 सितंबर 1998 को दर्ज की गई थी। 26 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, अपीलकर्ता पत्नी ने पहले से ही पुनर्विवाह कर चुकी हैं और प्रतिवादी पति ने पुनर्विवाह किया होगा और उन्हें अवश्य ही पुनर्विवाह करना चाहिए अपने जीवन में व्यवस्थित हो चुके हैं, यदि प्रतिवादी को जेल की सजा का आदेश दिया जाता है, तो कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा। धारा 406 आईपीसी कोई न्यूनतम प्रावधान नहीं करती इसमें अधिकतम तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों है। मामले के इन पहलुओं पर विचार करते हुए, यह निर्देश दिया जाता है कि पति को स्त्रीधन यानी 28 तोला सोना पत्नी को वापस करना होगा और जुर्माना राशि भी जमा करनी होगी।