पति की आकस्मिक मौत के बाद ठुकराई गई बेवा व उसकी नाबालिग बेटी को हाई कोर्ट से न्याय मिला
बिलासपुर। हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की प्रत्येक धारा को परिभाषित करते हुए पति की आकस्मिक मौत के बाद अनाथ हुए माँ बेटी को न्याय दिया है। कोर्ट ने मामले के अंतिम निराकरण तक पैतृक संपत्ति की कमाई से बेटी को 30 हजार रुपये भरण पोषण राशि देने का आदेश दिया है।
दुर्ग निवासी अपीलकर्ता अनिल मिश्रा पिता गणेश प्रसाद मिश्रा व एक अन्य के भाई सुनील मिश्रा की 30 जून 2011 को दुर्ग निवासी नीता मिश्रा से शादी हुई थी। शादी के 4 वर्ष बाद अगस्त 2011 में पुत्री का जन्म हुआ। दुर्भाग्य से 2011 में ही पति सुनील मिश्रा का ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई। पति की मौत के बाद ससुराल में उसके साथ दुर्व्यवहार होने लगा। बेवा नाबालिग बेटी व स्वयं का कोई आश्रय नहीं होने पर उनका जुर्म सहती रही। अप्रैल 2019 में उसकी अनुपस्थिति में बेटी के साथ मारपीट किया गया। उसने इसका प्रतिकार कर थाना में शिकायत की। इस पर ससुराल वालों ने उसे पिता के नाम का घर एवं गांव के घर व कृषि भूमि में अधिकार देने की बात कही। इसके बाद ससुराल वाले वादा से मुकर कर मा बेटी को ही रहने कही और इंतजाम करने की बात कहते हुए घर से बेदखल कर दिया। इस पर बेवा ने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत नाबालिग बेटी को भरण पोषण राशि दिलाये जाने की मांग की। न्यायिक मजिस्ट्रेट दुर्ग ने आवेदन पर अंतरिम आदेश पारित करते हुए 5 हजार रुपये आवेदक के नाबालिग पुत्री को प्रति माह देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ अनिल मिश्रा व एक अन्य ने अपील की। अपील पर जस्टिस पीपी साहू की कोर्ट में सुनवाई हुई। हाई कोर्ट के समक्ष यह बात आया कि बेवा का ससुर व सास पेंशनभोगी थे। गांव में उनके नाम पर 7 एकड़ कृषि भूमि व मकान है, उक्त पैतृक संपत्ति में पति की मौत के बाद उसकी पुत्री का बराबर का हक है। उक्त पैतृक संपत्ति पर अपीलकर्ताओं का कब्जा है, व इससे वे व्यवसाय कर कमाई कर रहे। कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को सही ठहराते हुए, पैतृक संपत्ति की कमाई में से 30 हजार रुपये पीड़िता की पुत्री को देने का आदेश दिया है। कोर्ट का यह आदेश उन सभी पीड़ितों के लिए मिल का पत्थर साबित होगा, जिसमें पति की आकस्मिक मौत के बाद बेवा व उसके बच्चों को सम्पति से बेदखल किया जाता है। हाई कोर्ट ने इस मामले में अधिनियम के सभी धारा को परिभाषित करते हुए कहा भले ही नाबालिग ने आवेदन नही दिया था किन्तु वह पैतृक संपत्ति में हिस्सा प्राप्त करने की हकदार है।
