सेवा से हटाना अनुपातहीन सजा-हाईकोर्ट
00 अपीलीय अधिकारी को सजा कम करने का निर्देश
बिलासपुर। जस्टिस एके प्रसाद ने कदाचरण एवं अनुशासनहीनता के आरोप में सीआईएसएफ के कांस्टेबल को सेवा से अलग किए जाने को अनुपातहीन सजा माना है। कोर्ट ने मामले में अपीलीय अधिकारी को 90 दिवस के अंदर सजा को कम करने का निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ता अनुपम देवनाथ सीआईएसएफ में वर्ष 2013 से कांस्टेबल जीडी के पद में कार्यरत है। उसके खिलाफ अनुशासनहीनता, कदाचरण, बिना उचित माध्यम से बल के उच्च अधिकारियों को मेल से शिकायत भेजने, फेसबुक में बल के संबंध में आपत्तिजनक पोस्ट करने सहित अन्य आरोप में कंपनी ने नोटिस जारी किया एवं जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। याचिकाकर्ता ने नोटिस लेने से इंकार कर जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ। कंपनी ने उसके इस कृत्य को अनुशासनहीनता मानते हुए 26 अप्रैल 2024 को बर्खास्त कर दिया। इसके खिलाफ उसने कंपनी के उच्च प्राधिकारी के समक्ष अपील पेश की। अपील में उसने बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इस पर विचार नहीं किए जाने पर हाईकोर्ट में याचिका पेश की। याचिका में कहा गया कि उसके पर बुजुर्ग माता-पिता, दो बच्चे व परिवार के पालन पोषण का भार है। उसके पक्ष को सुनने बिना प्रकृतिक न्याय के खिलाफ कार्रवाई की गई। याचिका में आगे कहा गया कि उसे लगातार प्रताड़ित किया जा रहा था। जिसकी उसने शिकायत की। इसके अलावा 12 घंटे डयूटी का विरोध किया था। कंपनी की ओर से जवाब प्रस्तुत कर बताया कि याचिकाकर्ता ने नोटिस लेने से इंकार किया एवं जांच में उपस्थित नहीं हुआ। बल के नियम के विरूद्ब उसने उच्च अधिकारियों से ई मेल से शिकायत की। सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस एके प्रसाद ने अपने आदेश में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता पर कथित कदाचार के लिए लगाई गई सजा अनुपातहीन है। जबकि यह न्यायालय चुनौती दिए गए आदेश में उस सीमा तक हस्तक्षेप नहीं करता है, जिस सीमा तक यह कदाचार के निष्कर्ष से संबंधित है, यह लगाई गई सजा की मात्रा में हस्तक्षेप करता है। यह न्यायालय मानता है कि सेवा से हटाने की सजा अनुपातहीन है। कथित कदाचार की प्रकृति इतनी गंभीर नहीं है कि उसे बर्खास्त करने जैसा कठोर दंड दिया जा सके। परिणामस्वरूप, अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्बारा लगाई गई तथा अपीलीय प्राधिकारी द्बारा बरकरार रखी गई सेवा से हटाने की सजा को रद्द किया जाता है। मामले को अनुशासनात्मक प्राधिकारी को इस निर्देश के साथ भेजा जाता है कि वह सजा की मात्रा पर पुनर्विचार करे तथा लागू सीआईएसएफ नियमों के अनुसार सेवा से हटाने के अलावा कम दंड लगाए। अनुशासनात्मक प्राधिकारी इस आदेश की प्राप्ति की तिथि से 90 दिनों की अवधि के भीतर उचित आदेश पारित करेगा।