हाईकोर्ट ने मासूम पीड़िता की गवाही को विश्वसनीय माना, आरोपी की अपील खारिज
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने दो वर्ष दस माह की मासूम बच्ची की गरीमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास करने के आरोपी की अपील को खारिज करते हुए सत्र न्यायालय से सुनाई गई सजा को यथावत रखा है। विचारण न्यायालय ने आरोपी को 363 में 5 वर्ष एवं पाक्सो में 5 वर्ष कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने मासूम, उसकी मां एवं प्रत्यक्षदर्शी गवाह के बयान को विश्वसनीय माना है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा उत्कृष्ट गवाह’ बहुत उच्च गुणवत्ता और क्षमता वाला होना चाहिए, अप्रतिद्बंद्बी होना चाहिए। ऐसे गवाह के बयान पर विचार करते हुए न्यायालय को बिना किसी हिचकिचाहट के इसे उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार करने की स्थिति में होना चाहिए।
28 नवंबर 2021 की शाम को शिकायतकर्ता की दो वर्ष 10 माह की बेटी अपने मौसी के घर के सामने खेल रही थी। शाम करीब 5 बजे आरोपी आया और बच्ची को चॉकलेट और बिस्कुट खरीदने के लिए 2 रुपये दिए। करीब 30-45 मिनट बाद आरोपी वापस आया और पीड़िता को उठाकर अपने घर की ओर ले जाने लगा। पीड़िता की मौसी ने आरोपी को बच्ची को ले जाने से मना किया, जिसे उसने अनसुना कर दिया। चूंकि आरोपी और उसकी बहन अक्सर पीड़िता को खाना खिलाने के लिए अपने घर ले जाते थे, इसलिए उसने कुछ नहीं कहा। शाम करीब 6 बजे उनके पड़ोसी पीड़िता को गोद में उठाकर घर ले आए और बताया कि जब वह गायों को बांधने जा रहे थे, तो उन्होंने देखा कि आरोपी अपना और पीड़िता का कपड़ा उतार रहा है…बाल गृह में आरोपी द्बारा पीड़िता के कपड़े उतारकर उसके साथ कुछ अनुचित करने का प्रयास किया गया।
घटना की सूचना उसके पति व अन्य ग्रामीणों को दी गई। शिकायत के आधार पर आरोपी के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी गई। गवाहों के बयान दर्ज किए गए तथा पीड़िता के जन्म प्रमाण पत्र की प्रमाणित प्रति जब्त कर ली गई। मुख्य गवाहों के बयान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी छुईखदान के समक्ष दर्ज किए गए।
खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 354(ए)(बी) तथा यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 7/8, 9(डी)(पी)/10, 11 के तहत चालान पेश किया गया। विचारण न्यायालय ने आरोपी को 5 वर्ष कैद एवं अर्थदंड की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ आरोपी ने अपील पेश की थी।
अपील में कहा गया अपराध में अपीलकर्ता को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने आगे दलील दी कि अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 363 तथा पोक्सो अधिनियम की धारा 9 (एम) (यू) के तहत न्यूनतम 5 वर्ष की सजा दी गई है तथा अपीलकर्ता 01.12.2021 से जेल में बंद है तथा वह लगभग 3 वर्ष 6 माह 9 दिन की जेल की सजा काट चुका है। यद्यपि पीड़िता नाबालिग बताई गई है, लेकिन पीड़िता की कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं है, जिससे पता चले कि अपीलकर्ता ने पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया था।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से पीड़िता की बयान का प्रतिपरीक्षण कराने का निर्देश दिया था। कोर्ट के आदेश पर 3 अप्रैल 2025 को पीड़िता अपनी मां के साथ विधिक सेवा प्राधिकरण में उपस्थित हुई एवं अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा वर्तमान अपील में विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या पीड़िता की गवाही स्वीकार करने योग्य है और क्या अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता के मामले को उचित संदेह से परे स्थापित किया है।
यह देखना उचित है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में अपीलकर्ता की दोषसिद्धि पीड़िता की एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है या नहीं, यह प्रश्न अब प्रासंगिक नहीं रह गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक निर्णयों में इस मुद्दे पर विचार किया है और माना है कि यदि पीड़िता की एकमात्र गवाही विश्वसनीय पाई जाती है तो अपीलकर्ता को दोषी ठहराने का एकमात्र आधार हो सकती है और इस तरह के मामलों में पीड़िता की विश्वसनीय गवाही स्वीकार किए जाने योग्य है। जहां तक अपराध की तिथि पर पीड़िता की आयु का प्रश्न है, वह इस अप्रिय घटना के समय 2 वर्ष 10 माह और 10 दिन की थी। प्रत्यक्षदर्शी गवाह हैं और जिन्होंने वर्तमान अपीलकर्ता के कृत्य को स्पष्ट रूप से बताया है, पीड़िता की मां के बयान, निरीक्षक के बयान, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के माध्यम से उपस्थित हुई पीड़िता की मां द्बारा उठाई गई आपत्ति, अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री और उपरोक्त निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय द्बारा निर्धारित विधि के सिद्धांत पर विचार करने के अपरांत आरोपी की अपील को खारिज किया है।