पहले फेसबुक से पहचान और दोस्ती व प्रेम फिर यौन शोषण हो गया
00 हाईकोर्ट ने कहा पीड़िता की सहमति थी
बिलासपुर। फेसबुक से 2018-2019 में युवती की युवक से पहचान हुई, पहचान दोस्ती में बदला व प्रेम संबंध हो गया। युवक ने शादी का झांसा देकर यौन शोषण किया बाद में शादी से इंनकार कर दिया। निचली अदालत से आरोपी के दोषमुक्त होने के खिलाफ पीड़िता ने हाईकोर्ट में अपील पेश की। हाईकोर्ट ने पीड़िता के बालिग होने एवं उसकी सहमति से संबंध बनाने के आधार पर अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत के निर्णय को यथावत रखा है।
अभियोजन के अनुसार पीड़िता ने 26 अप्रैल 2023 को पुलिस अधीक्षक बेमेतरा को यौन शोषण का शिकायत की। शिकायत में कहा गया कि उसकी फेसबुक के माध्यम से आरोपी से 5-6 वर्ष पूर्व पहचान हुई थी। इसके बाद दोस्ती हो गई। कुछ समय बाद दोनों के मध्य प्रेम संबंध हो गया। आरोपी ने 2021 को उसे रात 11.30 बजे फोन कर बुलाया एवं अपनी मोटर साइकिल में बैठाकर अपने एक दोस्त के घर ले गया। आरोपी ने शादी करने की बात कहते हुए संबंध स्थापित किया। इसके बाद बारबार शारीरिक संबंध बनाया। इससे वह दो बार गर्भवती हुई। आरोपी ने उससे कहा कि शादी से पहले गर्भवती होने पर उसके माता-पिता स्वीकार नहीं करेंगे और दोनों बार गोली देकर गर्भपात करा दिया। शादी करने के लिए कहने पर उसने 25 लाख रुपये की मांग की और शादी से इंनकार कर दिया। पुलिस ने शिकायत पर आरोपी के खिलाफ अपराध पंजीबद्ब कर चालान पेश किया। बेमेतरा एफटीसी अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया। इसके खिलाफ पीड़िता ने हाईकोर्ट में अपील पेश की थी। हाईकोर्ट ने अपील में सुनवाई उपरांत अपने आदेश में कहा कि साक्ष्यों का अवलोकन से पीड़िता और आरोपी के बीच प्रेम संबंध होना प्रतीत होता है। आरोपी और वह एक सहमति वाली पार्टी थी क्योंकि वह साथ रही थी। पीड़िता द्बारा उसके साथ रहने व लेजाने के दौरान कोई प्रतिरोध नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त, निर्विवाद रूप से, पीड़िता की उम्र 23 वर्ष है। एफ.आई.आर. दर्ज करने में लगभग दो वर्ष की देरी है। रिकॉर्ड से पता चलता है कि उनके रिश्ते की अवधि के दौरान, अभियोक्ता स्वयं आरोपी को अपने साथ शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति दी है। इसमें उसकी अपनी इच्छा और सहमति रहा। इसके अलावा मेडिकल जांच में भी गर्भावस्था के संबंध में कोई निश्चित राय नहीं दी गई। कानून में अच्छी तरह से स्थापित है कि बलात्कार के मामले में पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर भी कायम रखा जा सकता है। वर्तमान मामले में अभियोक्ता का बयान पूरी तरह से भरोसेमंद प्रतीत नहीं होता है। इसके आचरण से पता चलता है। वह एक सहमति देने वाली पार्टी थी। इसके साथ हाईकोर्ट ने पीड़िता की अपील को खारिज करते हुए आरोपी के दोषमुक्ति आदेश को यथावत रखा है।