किसी शासकीय सेवक को न्यायालय के आदेश पर बिना जांच के बहाल किया गया हो तो कर्मचारी पिछला वेतन प्रा’ करने का हकदार होगा- हाईकोर्ट
बिलासपुर। आनंद मार्गी होने का आरोप लगा कर सेवा से 9 वर्ष तक पृथक रखे गए जल संसाधन विभाग के कर्मचारी को 25 वर्ष बाद उसका हक मिला है। कोर्ट ने कहा किसी शासकीय सेवक को पदच्युत, निष्कासन या अनिवार्य सेवानिवृत्त को न्यायालय द्बारा अपास्त कर दिया गया हो और उसे अन्य किसी जांच के बिना बहाल कर दिया गया हो, तो उस अवधि जिसमें वह सेवा से बाहर था उसे सभी प्रयोजनों के लिए सेवा माना जाएगा तथा वह उस अवधि का पूर्ण वेतन एवं भत्ता पाने का हकदार है। इसके साथ कोर्ट ने हाईकोर्ट में पिछले 24 वर्ष से लंबित देयक के लिए पेश याचिका को निराकृत करते हुए शासन को सेवा से बाहर किए गए अवधि के वेतन व अन्य देयकों का भुगतान करने का आदेश दिया है।
राजनांदगांव निवासी याचिकाकर्ता अब्दुल रहमान अहमद का जल संसाधन विभाग में सहायक ड्राफ्टमैन के पद में अगस्त 1989 को नियुक्ति हुई थी और उनकी सेवाएँ मुख्य अभियंता, महानदी कछार रायपुर के अधीन कर दी गई। 19 अप्रैल 1991 को प्रमुख अभियंता, जल संसाधन ने याचिकाकर्ता के आनंद मार्ग संगठन से जुड़े होने पर चरित्र के आधार पर बर्खास्तगी का आदेश पारित किया। इस आदेश के खिलाफ उन्होंने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण में आवेदन दिया। 18 मई 1999 को न्यायाधिकरण ने प्राकृतिक न्याय के सिद्बांत का उल्लंघन करने के आधार पर याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही विभाग को मामले की अलग से जांच करने की छूट प्रदान की। न्यायाधिकरण के आदेश पर याचिकाकर्ता को बहाल किया गया किन्तु उसकी पिछली सेवा को बिना जोड़े फ्रेस नियुक्ति दी गई। इसके साथ विभाग ने न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ कही अपील भी नहीं की व न ही याचिकाकर्ता के आनंद मार्ग संगठन से जुड़े होने की जांच नहीं करने का निर्णय लिया। बर्खास्त किए जाने से पुन नियुक्ति दिए जाने के बीच की अवधि का वेतन एवं अन्य भत्ता दिलाए जाने की मांग को लेकर उन्होंने एमपी हाईकोर्ट में याचिका पेश की। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की स्थापना के बाद मामले को यहां भ्ोजा गया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सेवा से हटाए गए अवधि का वेतन देने का आदेश दिया। मामले की अंतिम सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी की एकलपीठ में सुनवाई हुई। सुनवाई उपरांत कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 54-ए(1). जहां बर्खास्तगी, निष्कासन या
सरकारी कर्मचारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को रद्द कर दिया गया है। सरकारी कर्मचारी को बिना किसी जांच के बहाल किया गया है तो वह पिछला पूरा वेतन व भत्ता प्रा’ करने का हकदार है। इसके साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सेवा से बाहर रख्ो गए समय का पूरा वेतन एवं भत्ता देने का निर्देश दिया है। यचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनूप मजुमदार ने पैरवी की है।
