बिलासपुर । भिक्षा वृत्ति निवारण अधिनियम को राज्य में अंसवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए पेश जनहित याचिका में आज सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने शासन से शपथपत्र पर यह जानकारी मंगाई है कि , अब तक क्या कार्रवाई की गई है और कितने डिटेंशन सेंटर राज्य में काम कर रहे हैं । छत्तीसगढ़ में 8 हजार लोग भिक्षावृत्ति पर निर्भर है। अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद निर्धारित की गई है ।
अधिवक्ता अमन सक्सेना ने एक जनहित याचिका पेश कर स्वयं पैरवी करते हुए राज्य मे भिक्षा वृत्ति निवारण अधिनियम को अंसवैधानिक घोषित करने की मांग की है। आज चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डीविजन बेंच में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि, क्या इस एक्ट का दुरूपयोग किया गया है । जवाब में उन्होंने कहा कि , कभी भी एक्ट का दुरूपयोग हो सकता है , मिसयूज के कारण ही एक्ट अंसवैधानिक नहीं होगा अगर एक्ट ही गलत रूप में बनाया गया है ,तो वह अंसवैधानिक होता है । बहस के दौरान एडवोकेट सक्सेना ने अदालत में बताया कि , केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने संसद में सभी राज्यों के जो आंकड़े पेश किये थे उसमें छत्तीसगढ़ 8 हजार भिक्षुओं के रहने का उल्लेख किया गया था । यह 2011 की जनगणना के आधार पर बताया गया था । चीफ जस्टिस से राज्य शासन के अधिवक्ता ने भारत सरकार, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किए गए डेटा के बारे में कोर्ट को सूचित करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा इसकी अनुमति दे दी गई। कोर्ट ने शासन से शपथपत्र पर यह जानकारी मंगाई है कि , अब तक क्या कार्रवाई की गई है और कितने डिटेंशन सेंटर राज्य में काम कर रहे हैं ।
यह है पीआइएल में
राज्य मे यह अधिनियम भिक्षा को एक जुर्म करार देता है, वो गरीब लोग जिनके पास दो वक्त की रोटी भी भी नहीं है उन्हे मुजरिम बताया जाता है, इस विधान के तहत पूलिस किसी भी व्यक्ति को इसके संदेह मे डिटेन कर सकती है*.मप्र मे 1973 मे पारित इस विधान को छत्तीसगढ सरकार ने इसी रूप में ही स्वीकार कर लिया था ।. इसे चुनौती देते हुए अमन सक्सेना ने पी आई एल पेश की इसमे कहा गया कि राज्य में करीब ढाई हजार परिवार भिक्षा पर निर्भर हैं ।इन लोगों को सरकार के सहयोग की जरूरत है ।

kamlesh Sharma

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