एक ऐसा अपराध जो पीड़िता की मौत के बाद उजागर हुआ
00 अपराधी पर नाबालिग से दुष्कर्म का अपराध सिद्ध नही हो सका
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में एक ऐसा घटना सामने आया है जिसमें पीड़िता की मौत के बाद प्रशासन को उसके साथ अपराध होने की जानकारी हुई। मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने कार्रवाई कर कथित आरोपी को सजा दिलाने का प्रयास किया किंतु ऊपर की अदालत में अभियोजन पक्ष अपराध सिद्ध करने में विफल हो गया।
छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचल क्षेत्र में रहने वाली 11 वी की एक छात्रा के पेट दर्द हुआ। उसे पहले पास के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। हालत नाजुक होने पर मेडिकल कालेज रेफर किया गया। दूसरे दिन उसकी मौत हो गई। मेडिकल कालेज ने छात्रा की संदिग्ध मौत की सूचना पुलिस को दी। पुलिस ने मर्ग कायम कर पीएम कराया। विवेचना में पुलिस के समक्ष यह बात आई कि मृतका का युवक के साथ संबंध रहा, जिससे वह गर्भवती हुई। 2 मई 2019 को उसने मृत शिशु को घर पर जन्म दिया। परिवार के लोगो ने सामाजिक रिवाज से मृत शिशु के शव को दफना दिया। प्रसव के बाद पीड़िता को पेट दर्द व खून की उल्टी होने पर अस्पताल ले जाया गया था। विवेचना में मृतका के साथ अपराध होने की बात सामने आने पर पुलिस ने शिशु के शव को कब्र से निकाल कर कथित आरोपी का डीएनए टेस्ट कराया। टेस्ट में आरोपी के ही मृत शिशु का जैविक पिता होने की पुष्टि हुई। पुलिस ने पीड़िता के 5 वी व 10 वी के अंक सूची के आधार उसके नाबालिग होने की बात कहते हुए आरोपी को धारा 376 व पाक्सो एक्ट में गिरफ्तार कर जेल दाखिल किया। निचली अदालत ने आरोपी को पाक्सो एक्ट में 20 वर्ष कठोर कारावास व अर्थ दंड की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ आरोपी ने ऊपरी अदालत में अपील पेश की। डीएनए टेस्ट में आरोपी के मृत शिशु के जैविक पिता होने की पुष्टि के बावजूद उसने आरोप को अस्वीकार किया। अपील में आरोपी ने मुख्य रुप से पीड़िता के नाबालिग नहीं होने व सहमति से संबंध होने की बात कही। इसके साथ ही पीड़िता ने गर्भवती होने की बात भी किसी को नहीं बताई थी। ऊपर की अदालत ने शासन व अपीलकर्ता के पक्ष को सुनने के बाद निर्णय पारित करते हुए निचली अदालत के सजा को खारिज किया है।
कोर्ट ने आदेश में कहा
घटना का समय कक्षा 5वीं व 10 वी की अंकसूची दी गई,
जिस पर पीड़िता की जन्म तिथि 13 सितंबर 2001 अंकित है। लेकिन अभियोजन पक्ष ने स्कूल का दाखिला खारिज रजिस्टर पेश नहीं किया। पीड़िता के पिता के साक्ष्य, जिन्होंने अपने परीक्षण-प्रमुख में कहा है कि उनकी बेटी की उम्र उस समय 15 वर्ष थी , घटना का जिरह में उसने कहा
पीड़िता का जन्म उसके स्कूल के शिक्षक द्वारा दर्ज किया गया था । उनकी इच्छा के अनुसार और उन्होंने तारीख के संबंध में कोई दस्तावेज नहीं दिया था । पीड़िता की माँ ने भी इसी प्रकार कथन की एवं पीड़िता द्वारा गर्भवती होने की किसी को जानकारी नहीं दी थी। प्रसव के समय परिवार के सदस्य व अन्य लोग उपस्थित थे। मृत शिशु का जन्म होने पर उन्होंने सामाजिक रिवाज़ से शव को दफनाया था। दुष्कर्म पर एक मात्र पीड़िता की गवाही से सजा हो सकती है, किंतु मामले में पीड़िता का साक्ष्य ही नहीं हुई। मृत शिशु को जन्म देने के दो दिन बाद ही उसकी मौत हो गई। कोर्ट ने उच्चत्तम न्यायालय के विभिन्न साइटेशन के आधार पर अपील स्वीकार करते हुए निचली अदालत के आदेश को खारिज किया है।
