कोर्ट विधायिका को सहायता प्राप्त निजी स्कूलों के शिक्षकों को सरकारी कमर्चारियों के समान लाभ देने कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता
०० निजी स्कूल के सेवानिवृत्त शिक्षकों की याचिका खारिज
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने शासकीय सहायता प्र’ निजी स्कूलों के सेवानिवृत्त शिक्षकों को सरकारी स्कूल के शिक्षकों के समान पेंशन का लाभ प्रदान करने पेश याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कोर्ट विधायिका को कोई खास कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता, क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था के तहत संसद को कानून बनाने की संप्रभु शक्ति प्राप्त है, बाहरी शक्ति कोई खास कनून जारी नहीं कर सकती है।
शासन से सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों के सेवानिवृत्त शिक्षकों ने शासकी कर्मचारियों के समान लाभ व पेंशन दिलाए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में अलग अलग याचिकाएं पेश की थी। याचिका में कहा गया कि सहायता प्राप्त स्कूलों के कर्मचारी राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन के हकदार हैं। इस तथ्य के बावजूद अधिकारी याचिकाकर्ताओं को पेंशन लाभ नहीं दे रहे हैं। याचिकाकर्ताओं को पेंशन देने से इनकार किया है। सरकारी स्कूलों के कर्मचारियों, और अन्य 100% सहायता प्राप्त प्राइवेट कॉलेजों के कर्मचारियों को यह दिया जा रहा है, यह मनमाना और भेदभावपूर्ण है। राज्य अनुच्छेद 14 के तहत निष्पक्ष, उचित और बिना किसी मनमानी के काम करने के लिए बाध्य है। जब वैधानिक योजना समानता का आदेश देती है, और जब सर्कुलर इसकी पुष्टि करते हैं, तो राज्य ऐसे आधारों पर समान व्यवहार से पीछे नहीं हट सकता जो न तो तर्कसंगत हैं और न ही कानूनी रूप से उचित हैं। सार्वजनिक शिक्षा के लिए दशकों समर्पित करने वाले वरिष्ठ नागरिकों को पेंशन देने से इनकार करना याचिकाकर्ताओं के गरिमा के साथ जीने के अधिकार पर हमला करता है, जिससे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है। याचिकाकर्ताओं ने दशकों तक सेवा करने के बावजूद, वैधानिक दायित्वों को पूरा करने के बावजूद, सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सहायता के बिना रह गए हैं। ऐसा इनकार समानता, निष्पक्षता और सुशासन के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं एवं शासन के पक्ष सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता पेंशन की मांग कर रहे हैं लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है क्योंकि उक्त स्कूल न तो सरकारी स्कूल है और न ही याचिकाकर्ता सरकारी कर्मचारी हैं और इस प्रकार याचिकाकर्ताओं का दावा निराधार है। हालांकि राज्य याचिकाकर्ताओं के स्कूल को 100% ग्रांट-इन-एड दे रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि याचिकाकर्ता पेंशन के हकदार होंगे, क्योंकि यह सहायता ऐसे स्कूलों को केवल स्कूलों के उचित प्रबंधन और सुचारू संचालन के उद्देश्य से दी जाती है। ग्रांट-इन-एड की आड़ में, याचिकाकर्ता पेंशन की मांग नहीं कर सकते। पहले भी निजी सहायता प्राप्त स्कूलों और कर्मचारी संघों द्बारा ऐसे स्कूलों के लिए पेंशन देने की मांग उठाई गई थी और उचित विचार-विमर्श के बाद, स्कूल शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने पत्र दिनांक 07/01/2009 और 05/02/2009 के माध्यम से ऐसी मांगों को खारिज कर दिया था क्योंकि ऐसे निजी सहायता प्राप्त स्कूलों को पेंशन देने का कोई प्रावधान नहीं है।
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वेतन शब्द परिभाषित है
.नियम, 1978 के नियम 10 के अनुसार, राज्य सरकार नोटिफिकेशन द्बारा इस अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बना सकती है। बाद में संशोधन अधिनियम, 2000 द्बारा, ’’वेतन’’ शब्द को परिभाषित किया गया है कि वेतन का मतलब उस दर पर एक शिक्षक या कर्मचारी को देय वेतन और अन्य भत्ते हैं, जैसा कि संस्थान द्बारा अधिसूचित किया जा सकता है। उक्त प्रावधान को ध्यान से देखने पर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ‘वेतन’ का मतलब वेतन और अन्य भत्ते हैं और इसमें पेंशन लाभ का कोई उल्लेख नहीं है। संशोधित नियमों के नियम 33 में भी, संस्थान के प्रमुख सहित शिक्षकों और एक शैक्षणिक संस्थान के अन्य कर्मचारियों का वेतनमान, जो सरकारी अनुदान प्राप्त करता है, सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में कर्मचारियों की संबंधित श्रेणियों के लिए स्वीकृत वेतनमान के अनुसार होगा, जबकि शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियां, योग्यताएं, वेतन का भुगतान और सेवा की शर्तें नियम, 1978 और उसके तहत बनाए गए नियमों के प्रावधानों द्बारा शासित होंगी।
याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि पेंशन लाभ देने के संबंध में कोई नियम हैं। राज्य को सहायता प्राप्त स्कूलों के सेवानिवृत्त शिक्षकों/कर्मचारियों को राज्य सरकार के शिक्षकों/कर्मचारियों के बराबर पेंशन लाभ देने के लिए नियम बनाने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है। इसके साथ कोर्ट ने सभी याचिकाओं को खारिज किया है।
