हिरासत में मौत पुलिस अत्याचार का नतीजा-हाई कोर्ट

00 मृत्यु का कारण स्पष्ट करना राज्य की जिम्मेदारी

00 अर्जुनी पुलिस की हिरासत में मौत, 8 सप्ताह के अंदर मुआवजा देने का आदेश

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने पुलिस हिरासत में हुई संदिग्ध मौत के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को मृतक के परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा -जहां किसी व्यक्ति की मौत पुलिस हिरासत में होती है, वहां मृत्यु का कारण स्पष्ट करना राज्य की जिम्मेदारी है। ऐसा न करना जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मौत के हालात यह दिखाते हैं कि मृतक को अमानवीय यातना दी गई थी और यह मामला कस्टोडियल बर्बरता का उदाहरण है।

मामला धमतरी जिले के अर्जुनी थाना का है। याचिकाकर्ता दुर्गा देवी कैठोलिया ने बताया कि उनके पति दुर्गेंद्र कैठोलिया को 29 मार्च 2025 को धोखाधड़ी के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। 31 मार्च को उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां वे पूरी तरह स्वस्थ थे। शाम 5 बजे उन्हें फिर से थाने में रखा गया, जहां कुछ ही घंटों में उनकी मौत हो गई। परिजन का आरोप है कि पुलिस ने हिरासत में थर्ड डिग्री टार्चर दिया, जिससे दुर्गेंद्र की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर पर 24 पूर्व-मृत्यु चोटों का जिक्र है। मौत का कारण दम घुटने से हुई श्वसन विफलता बताया गया।

पुलिस ने मौत को छिपाने की कोशिश की-

अगले दिन पुलिस ने परिवार को बताया कि दुर्गेंद्र बीमार पड़ गए थे और अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन बाद में पता चला कि उनकी पहले ही मौत हो चुकी थी। शव मिलने पर परिवार ने शरीर पर चोटों के निशान देखकर हंगामा किया और उच्चाधिकारियों से शिकायत की।

हाईकोर्ट ने कहा – यह प्राकृतिक मौत नहीं, पुलिस अत्याचार का नतीजा

न्यायालय ने कहा कि सभी साक्ष्य साफ बताते हैं कि यह मौत पुलिस की यातना से हुई है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मौत के हालात यह दिखाते हैं कि मृतक को अमानवीय यातना दी गई थी और यह मामला कस्टोडियल बर्बरता का उदाहरण है। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि हिरासत में मौत के मामलों में मुआवजा देना सार्वजनिक कानून के तहत जरूरी उपाय है।

कोर्ट का आदेश : 5 लाख का मिलेगा मुआवजा-

हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि, मृतक की पत्नी दुर्गा देवी को ₹तीन लाख की राशि दी जाए, ताकि वह और उनके दो नाबालिग बच्चों की देखभाल कर सकें। मृतक के माता-पिता को प्रत्येक एक लाख दिए जाएं। यह भुगतान 8 हफ्ते के भीतर किया जाए, अन्यथा राशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगेगा।

राज्य को दी चेतावनी, डी.के. बसु दिशानिर्देशों का पालन करें-

कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसी घटनाएं जनता के भरोसे को तोड़ती हैं। राज्य को अपने पुलिसबल को मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशील बनाना होगा और डी.के. बसु केस में तय दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि, हर हिरासत में मौत राज्य की जवाबदेही पर सवाल उठाती है। मुआवजा केवल राहत नहीं, बल्कि ऐसे अमानवीय कृत्यों की पुनरावृत्ति रोकने का माध्यम है।

kamlesh Sharma

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