किसी सरकारी कर्मचारी को आरोपों का सामना करने, प्रस्तावित दंड का विरोध का उचित अवसर दिया जाना चाहिए-हाईकोर्ट

०० शस्त्र बल के कांस्टेबल का बर्खास्तगी आदेश निरस्त

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने शस्त्र बल के कांस्टेबल को बर्खास्त किए जाने की कार्रवाई को इस आधार पर रद्द किया कि दूसरे कारण बताओ नोटिस में पिछले रिकॉर्ड का खुलासा न करना जिसमें पिछले रिकार्ड दंड का अधार है, यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2) का उल्लंघन है। संविधान के अनुच्छेद 311(2) के अंतर्गत, किसी सरकारी कर्मचारी को न केवल आरोपों का सामना करने का, बल्कि प्रस्तावित दंड का विरोध करने का भी उचित अवसर दिया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ता शिव पूजन गर्ग 15.10.2017 को छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, भिलाई, जिला दुर्ग की 7 वीं बटालियन में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत था। उक्त तिथि को, कांस्टेबल बलजीत सिह को नशे की हालत में पाए जाने पर मेडिकल परीक्षण के लिए ले जाया गया। उस समय, बलजीत सिह याचिकाकर्ता द्बारा उत्पन्न बाधा के कारण भाग गया। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता को 27.12.2017 को आरोप-पत्र जारी किया गया। जांच अधिकारी और प्रस्तुतकर्ता अधिकारी नियुक्त किए गए, और जांच पूरी होने के बाद जांच अधिकारी ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने 06.08.2019 को दूसरा कारण बताओ नोटिस जारी किया और बाद में, दिनांक 23/10/2019 के आदेश द्बारा सेवा से बर्खास्तगी का दंड दिया। याचिकाकर्ता ने अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर की, जिसे दिनांक 03.01.2020 के आदेश द्बारा खारिज कर दिया गया। एक दया अपील भी दिनांक 11.08.2020 के आदेश द्बारा खारिज कर दी गई।

याचिकाकताã ने बर्खास्तगी के खिलाफ अधिवक्ता टीके झा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका पेश की। याचिका में तर्क दिया कि याचिकाकर्ता पर लगाया गया बर्खास्तगी का दंड पूर्व में दिए गए दंडों पर आधारित था, लेकिन यह तथ्य दिनांक 06.08.2019 के दूसरे कारण बताओ नोटिस में प्रकट नहीं किया गया था। आगे दलील दी गई कि पिछली सज़ाओं का खुलासा न करने से दंड आदेश का उल्लंघन हुआ है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के मैसूर राज्य बनाम के. मांचे गौड़ा, 1963 एससीसी ऑनलाइन एससी में दिए गए फैसले पर भरोसा किया है।

याचिका में जस्टिस राकेश मोहन पांडेये की कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने याचिकाकर्ता एवं उत्तरवादी पक्षों के विद्बान अधिवक्ताओं को सुनने व फाइल में रखे गए दस्तावेजों का अवलोकन किया। सर्वोच्च न्यायालय ने के. मांचे गौड़ा (सुप्रा) मामले में निपटते हुए उस तथ्य को स्वीकार किया और उसी के अनुरूप हों। सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(2) के अंतर्गत, किसी सरकारी कर्मचारी को न केवल आरोपों का सामना करने का, बल्कि प्रस्तावित दंड का विरोध करने का भी उचित अवसर दिया जाना चाहिए। यदि पिछले रिकॉर्ड या पिछली सजाओं पर भरोसा किया जाना है, तो उन्हें दूसरे कारण बताओ नोटिस में प्रकट किया जाना चाहिए। अनुशासनात्मक कार्यवाही एक सतत प्रक्रिया है, और ऐसे पिछले रिकॉर्ड पर कर्मचारी को स्पष्टीकरण देने का अवसर देने के बाद ही दंड के चरण में विचार किया जा सकता है। वर्तमान मामले में, 06.08.2019 के दूसरे कारण बताओ नोटिस में यह तथ्य प्रकट नहीं किया गया कि बर्खास्तगी की प्रस्तावित सजा याचिकाकर्ता के पूर्ववृत्त पर आधारित थी। सुप्रा में प्रतिपादित कानून के मद्देनजर, याचिकाकर्ता इस तरह के भरोसे के बारे में सूचित किए जाने का हकदार है, ताकि उसे स्पष्टीकरण देने या खंडन करने का अवसर मिल सके।

विचाराधीन नोटिस एक साधारण कारण बताओ नोटिस था, जिसमें याचिकाकर्ता को केवल वर्तमान आरोपों का जवाब देने का अवसर दिया गया था, बिना किसी संदर्भ के पूर्ववृत्त का। हालाँकि, दंड आदेश से यह स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता का पिछला रिकॉर्ड ही निर्णय का आधार बना। यह चूक संविधान के अनुच्छेद 311(2) के तहत परिकल्पित उचित अवसर से वंचित करने के समान है।

इसके साथ हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के बर्खास्तगी आदेश को निरस्त किया है।

हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश को निरस्त करने के साथ मामला को अनुशासनात्मक प्राधिकारी को वापस भेजा है ताकि के. मांचे गौड़ा मामले में घोषित कानून का कड़ाई से पालन करते हुए एक नया कारण बताओ नोटिस जारी किया जा सके।

kamlesh Sharma

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