कोर्ट के निर्देश के बाद भी हिंदी माध्यम के स्कूल को बंद करने पर शिक्षा सचिव को नोटिस
बिलासपुर। जनहित याचिका में हिन्दी माध्यम से चल रहे शाला को बंद नहीं करने एवं यदि छात्र हिन्दी माध्यम से अध्ययन करने के इच्छुक हैं तो इस माध्यम से पढ़ाने का निर्देश देते हुए जनहित याचिका को निराकृत किया। कोर्ट निर्देश का पालन नहीं कर हिन्दी माध्यम से संचालित शाला को अंग्रेजी माध्यम में बदले जाने पर हाईकोर्ट ने शिक्षा सचिव को नोटिस जारी किया है।
राज्य शासन ने शिक्षा सत्र 2016-2017 में हिन्दी माध्यम से संचालित शाला को अंग्रेजी माध्यम में बदलने का निर्णय लिया। इसके खिलाफ जशपुरनगर निवासी डॉ रविन्द्र कुमार वर्मा ने हाईकोर्ट में तीन अलग अलग याचिका पेश की। याचिका में हिन्दी राष्ट्र भाषा होने के कारण हिन्दी माध्यम से चल रहे शाला को बंद कर अंग्रेजी माध्यम में नहीं खोलने की मांग की गई। हाईकोर्ट ने तीनों ही याचिका को क्लब कर सुनवाई की एवं निराकृत किया। कोर्ट ने राज्य शासन द्बारा वर्तमान में संचालित लगभग 377 अंगेजी माध्यम से संचालित शालाओं को बंद करने का आदेश दिये जाने अनुचित ठहराया, किन्तु हिन्दी माध्यम से संचालिक शालाओं को पूरा बंद करने के निर्णय को भी गलत ठहराया। याचिकाओं को निर्देश के साथ निराकृत किया गया। आदेश में कोर्ट ने कहा अंग्रजी माध्यम से संचालित शाला यथावत चलती रहेंगी किन्तु छत्तीसगढ़ शासन हिन्दी माध्यम से अध्ययनरत छात्रों के लिए पूर्व में संचालित शालाओं में ही अध्यापन की व्यवस्था करेगी- साथ ही इच्छुक छात्र छात्राओं को प्रवेश देते हुए हिन्दी माध्यम से अध्यापन कार्य प्रारंभ करेगी। शासन चाहे तो दो पाली में शाला संचालिक कर सकती है। कोर्ट ने इस निर्देश का त्वरित पालन करने का निर्देश दिया था। कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं कर हिन्दी माध्यम से संचालित शालाओं को स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम शाला किए जाने पर डा रविन्द्र कुमार वर्मा ने शिक्षा सचिव डा आलोक कुमार को पक्षकार बनाते हुए अवमानना याचिका पेश की है। याचिका में कहा गया कि कोर्ट के आदेश का पालन ही नहीं किया गया। हिन्दी माध्यम से संचालित शालाओं को बंद कर अंग्रेजी माध्यम किया जा रहा है। सुनवाई उपरांत कोर्ट ने स्कूल शिक्षा सचिव को नोटिस जारी किया है।
हिंदी में बहस व राष्ट्र भाषा में आदेश
याचिकाकर्ता ने पूरी याचिका हिन्दी में पेश की थी। बहस भी हिन्दी में ही गई व आदेश भी हिन्दी में ही पारित किया गया है। सभी याचिका में याचिकाकर्ता ने स्वयं बहस कर तर्क प्रस्तुत किए हैं।
