12 वर्ष तक पति-पत्नी बनकर रहे, रिश्ते में खटास आने पर दुष्कर्म का रिपोर्ट दर्ज करा दी
०० ऐसा आचरण केवल न्यायालयों पर बोझ डालता है
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने सहमति से अन्य व्यक्ति के साथ बतौर पत्नी बनकर रहने एवं पति के अलग हो जाने पर दुष्कर्म का रिपोर्ट दर्ज कराने व न्यायालय द्बारा आरोप तय किए जाने के खिलाफ पेश याचिका में गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि सहमति से बने रिश्ते में खटास या पार्टनर का दूर हो जाना राज्य की आपराधिक मशीनरी को लागू करने का आधार नहीं हो सकता। ऐसा आचरण न केवल न्यायालयों पर बोझ डालता है, बल्कि ऐसे जघन्य अपराध जिम्मेदार व्यक्ति की पहचान को भी धूमिल करता है। इसके साथ कोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द किया है। कोर्ट ने आदेश की प्रति संबंधित न्यायालय को प्रेषित करने का निर्देश दिया है।
पश्चिम बंगला की मूल निवासी महिला अपने पति व बच्चों के साथ बिलासपुर में रह कर एनजीओ में काम करती थी। उक्त एनजीओ में रायपुर निवासी याचिकाकर्ता का आना जाना था। इससे महिला एवं याचिकाकर्ता के मध्य पहचान हुई थी। महिला का पति शराबी होने के कारण उसका ध्यान नहीं रखता था। ऐसी स्थिति में महिला का 2008 में याचिकाकर्ता से संबंध बन गया। बाद में महिला पति से अलग होकर बच्चों के साथ याचिकाकर्ता के साथ रायगढ़ में रहने लगी। 2019 तक दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे थे। 2019 में याचिकाकर्ता महिला से रायपुर जाने की बात कह कर गया उसके बाद लौट कर नहीं आया। इस पर महिला ने चक्रधरनगर थाना में याचिकाकर्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। रिपोर्ट में कहा गया कि उसका पहला पति शराबी था एवं उसका ध्यान नहीं रखता था। याचिकाकर्ता ने उससे शादी कर पत्नी बनाकर रखने का वादा किया था। वह शादी नहीं कर दैहिक शोषण करता रहा। पुलिस ने याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 376 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर न्यायालय में चालान पेश किया। इस मामले में रायगढ़ के एफटीसी कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 376 के तहत आरोप तय कर मामले की सुनवाई प्रारंभ की। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की एकलपीठ में याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ट्रायल कोर्ट द्बारा पारित विवादित आदेश, साथ ही रिकॉर्ड पर उपलब्ध दस्तावेजों, तथा पक्षों के विद्बान वकीलों की सुनवाई और दलीलों को ध्यान से देखने पर, ऐसा प्रतीत होता है कि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता दोनों ही विवाहित हैं। पीड़िता अपनी सहमति से उसके साथ पति-पत्नी के रूप में रह रही थी और उसके साथ सहमति से शारीरिक संबंध बना रही थी। इसके अलावा, यह तथ्य कि पीड़िता ने सभी सरकारी पहचान पत्रों पर अपने पति का नाम बदलकर वर्तमान याचिकाकर्ता का नाम पर रख दिया है, इस बात की पुष्टि करता है कि वह आवेदक के साथ स्वेच्छा से रह रही थी। इस तथ्य
पर विचार करते हुए कि पीड़िता 2008 से आवेदक के साथ रह रही है और उसके साथ शारीरिक संबंध बना चुकी है और उसने सभी सरकारी पहचान पत्रों पर अपने पति का नाम बदलकर वर्तमान आवेदक के नाम पर रख दिया है, इस बात की पुष्टि करता है कि वह आवेदक के साथ स्वेच्छा से रह रही थी और सर्वोच्च न्यायालय द्बारा उपर्युक्त निर्णयों में निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए, आवेदक ने हस्तक्षेप का मामला बनाया है। आपराधिक समीक्षा की अनुमति दी जाती है और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एफटीसी), रायगढ़ छत्तीसगढ़ द्बारा पारित 03.07.2021 के आदेश को रद्द किया जाता है। जिसके तहत अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोप तय किया था। इस आदेश की एक प्रति आवश्यक अनुपालन और अनुवर्ती कार्रवाई के लिए संबंधित ट्रायल कोर्ट को भ्ोजने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि सहमति से बने रिश्ते में खटास या पार्टनर का दूर हो जाना राज्य की आपराधिक मशीनरी को लागू करने का आधार नहीं हो सकता। ऐसा आचरण न केवल न्यायालयों पर बोझ डालता है, बल्कि ऐसे जघन्य अपराध जिम्मेदार व्यक्ति की पहचान को भी धूमिल करता है।