हाई कोर्ट ने एनएसएस कैम्प में छात्रों से नमाज अदा कराने के आरोपी प्रोफेसर्स की याचिका खारिज किया

बिलासपुर। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की डीबी ने कोटा एनएसएस कैम्प में हिन्दू छात्रों से दबाव डालकर नमाज अदा कराने के आरोपी गुरु घासीदास विवि के असिस्टेंट प्रोफेसर द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने पेश याचिका को खारिज किया है। कोर्ट ने पुलिस की जांच में रोक लगाने से इंकार किया है।

याचिकाकर्ता दिलीप झा, मधुलिका सिंह, सूर्यभान सिंह, डॉ ज्योति वर्मा , प्रशांत वैष्णव, बसंत कुमार गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर में सहायक प्राध्यापक हैं। विश्वविद्यालय द्वारा शिवतराई, कोटा, जिला बिलासपुर में 29.3.2025 से 1.4.2025 तक राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) शिविर का आयोजन किया गया था। विश्वविद्यालय द्वारा याचिकाकर्ताओं को शिविर की देखरेख के लिए नियुक्त किया गया था। दिलीप झा, को दिनांक 26.4.2025 के आदेश द्वारा उक्त शिविर का समन्वयक नियुक्त किया गया था। शिकायतकर्ता आस्तिक साहू, आदर्श कुमार चतुर्वेदी और नवीन कुमार, जिन्होंने एनएसएस शिविर में भाग लिया था, ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि हिंदू अनुयायियों के रूप में, उन्हें याचिकाकर्ताओं द्वारा नमाज अदा करने के लिए मजबूर किया गया था। ऐसी शिकायत पर, पुलिस ने उपरोक्त अपराध दर्ज किए।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि 14-15 दिनों की देरी से 14.4.2025 को एक लिखित शिकायत दर्ज की गई थी और यह राजनीति से प्रेरित थी। उन्होंने तर्क दिया कि यद्यपि शिविर में 150 हिंदू छात्रों ने भाग लिया था, लेकिन केवल तीन छात्रों ने एफआईआर दर्ज कराई। उन्होंने आगे कहा कि प्रतिभागियों को याचिकाकर्ताओं द्वारा नमाज पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया गया था और झूठे आरोप पर पुलिस ने अपराध दर्ज किया। उन्होंने यह भी कहा कि शिविर में मुस्लिम धर्म से संबंधित चार छात्र थे और उन्होंने नमाज पढ़ी। आगे तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता दिलीप झा को ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत पर रिहा किया गया है।

छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई आरोप नहीं बनता। एफआईआर और विद्वान ट्रायल कोर्ट द्वारा ली गई जानकारी को रद्द करने की मांग की गई।

,राज्य के वकील का कहना है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गंभीर आरोप हैं। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने शब्दों और दृश्य चित्रण का उपयोग करके शिकायतकर्ताओं, जो हिंदू धर्म से संबंधित हैं, को नमाज पढ़ने के लिए मजबूर किया, जो कि बीएनएस की धारा 190, 196(1)(बी), 197(1)(बी), 197(1)(सी), 299, 302 और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के प्रावधानों के अनुसार दंडनीय है। मामला जांच के अधीन है और गवाहों ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोपों का स्पष्ट रूप से समर्थन किया है। इसलिए, याचिका खारिज करने की मांग की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की डीबी ने याचिकाकर्ता व शासन के पक्ष को सुनने के बाद अपने आदेश में कहा नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, (2021) 19 एससीसी 401 के मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द करने के मुद्दे पर विचार करते हुए, प्रारंभिक चरण में निम्नानुसार निर्णय दिया:-

न्यायालय संज्ञेय अपराधों की कोई जांच नहीं करेंगे। रद्द करने की शक्ति का प्रयोग ‘दुर्लभतम मामलों’ में सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। (मृत्युदंड के संदर्भ में तैयार किए गए मानदंड के साथ भ्रमित न हों) आपराधिक कार्यवाही को आरंभिक चरण में ही नहीं रोका जाना चाहिए।

जब पुलिस द्वारा जांच चल रही हो, तो अदालत को एफआईआर में लगाए गए आरोपों के गुण-दोष पर विचार नहीं करना चाहिए। पुलिस को जांच पूरी करने की अनुमति दी जानी चाहिए। अस्पष्ट तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि शिकायत/एफआईआर जांच के योग्य नहीं है या यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। जांच के दौरान या उसके बाद, यदि जांच अधिकारी को यह पता चलता है कि शिकायतकर्ता द्वारा किए गए आवेदन में कोई तथ्य नहीं है, तो जांच अधिकारी विद्वान मजिस्ट्रेट के समक्ष एक उचित रिपोर्ट/सारांश दाखिल कर सकता है, जिस पर विद्वान मजिस्ट्रेट ज्ञात नियमों के अनुसार विचार कर सकते हैं। न्यायालय को जांच एजेंसी/पुलिस को एफआईआर में लगाए गए आरोपों की जांच करने की अनुमति देनी होती है। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता पहले से ही जमानत पर हैं, जांच चल रही है और आरोप-पत्र अभी तक दाखिल नहीं किया गया है, इसलिए मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून को ध्यान में रखते हुए तथा वर्तमान मामले के तथ्यों को देखते हुए, दोनों याचिकाएं खारिज किया जाता है।

kamlesh Sharma

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