जेल से जमानत पर छूटकर आरोपी ने फिर नाबालिग के साथ किया दुष्कर्म
00 हाईकोर्ट ने दिया ,दोनों अपराधों की सजा क्रमवार चलाने का निर्णय
बिलासपुर। जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा ने बलात्कार के दो अपराध में सुनाई गई अलग अलग सजा को एक साथ चलाने की मांग करते हुए पेश याचिका को खारिज किया है। कोर्ट ने कहा कि, वर्तमान मामले में आरोपी के रिकार्ड को देखते हुए उसकी याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।
एक अपराध में जमानत मिलने के बाद उसने फिर से वही अपराध किया, दोनों ही प्रकरण में न्यायालय ने अलग अलग सजा सुनाई है। इस कारण पहले अपराध की सजा पूरी करने के बाद दूसरे अपराध की सजा प्रारंभ होगी। याचिकाकर्ता संजय नागवंशी निवासी चुहीगढ़ाई सीतापुर सरगुजा मार्च 2014 में नाबालिग को शादी का झांसा देकर कुनकुरी ले गया, 2-3 माह अपने साथ रखकर कई बार दुष्कर्म किया। पीड़िता ने 20 जून 2014 को इसकी जानकारी अपने परिवार वालों को दी* रिपोर्ट पर पुलिस ने अपराध पंजीबद्ब कर चालान पेश किया* एफटीसी पाक्सो कोर्ट अंबिकापुर ने दिसंबर 2015 में आरोपी को 376 एवं पाक्सो में 10-10 वर्ष कैद व अर्थदंड की सजा से दंडित किया* सजा होने के बाद आरोपी को हाईकोर्ट से अस्थाई जमानत प्रदान की गई। जमानत में बाहर आने के बाद आरोपी ने एक अन्य नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया, इस मामले में भी आरोपी को अंबिकापुर पाक्सो कोर्ट से 2019 में 10 वर्ष कैद की सजा सुनाई गई है, आरोपी अंबिकापुर केंद्रीय जेल में पिछले 7 वर्ष से बंद हैं।
दोनों अपराधों की सजा साथ चलाने पेश की थी याचिका
आरोपी ने धारा 427 (1) के प्रावधानों का लाभ प्राप्त करने हाईकोर्ट में याचिका पेश कर कहा कि उसे पहले मामले में 10 वर्ष की सजा हुई, इसमें वह 7 वर्ष से अधिक की सजा काट चुका है। दूसरे अपराध में सुनाई गई सजा यदि पहले अपराध की सजा पूरा होने के बाद शुरू होगी तो उसे 20 वर्ष जेल में रहना होगा। इस कारण से दोनों ही सजाएं साथ चलाने की मांग की गई ।
कोर्ट ने आदेश में कहा
सीआरपीसी की धारा 427 के प्रावधानों के मद्देनजर, चूंकि सभी आपराधिक मामलों की सुनवाई अलग-अलग समयावधि में की गई, याचिकाकर्ता को प्रत्येक मामले में अलग-अलग दोषी ठहराया गया और निर्णय अलग-अलग तारीखों पर अलग-अलग पारित किए गए हैं, इसके लिए कोई आदेश नहीं था कि पिछली सजा के साथ इन सजाओं को चलना है। जब याचिकाकर्ता को दूसरे मामले में सजा सुनाई गई तो उसने पहले अपराध को उजागर नहीं किया। वर्तमान मामले में दोनों अदालतों ने एक साथ सजा चलाने का आदेश नहीं दिया ,इसलिए सजाएं क्रमिक रूप से चलाई जाएंगी। यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां इस न्यायालय के विवेक का प्रयोग याचिकाकर्ता के पक्ष में किया जाना है ,इसका ट्रैक रिकॉर्ड इतना अच्छा नहीं है क्योंकि वह आदतन अपराधी है। ऐसे एक से अधिक मामले हैं जिनमें उसे दोषी ठहराया गया है और अलग-अलग अवधि के लिए कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने पहला अपराध किया और उसके बाद अस्थाई जमानत में छूटने के बाद, उसने एक और अपराध किया जो कानून की नज़र में बहुत जघन्य अपराध है। इसके साथ कोर्ट ने आरोपी की याचिका खारिज कर दी ।
