पप्पू मामा को मरने तक जेल में रहना होगा, मासूम से दरिंदगी के आरोपी की अपील खारिज
बिलासपुर। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा पीड़िता की गवाही महत्वपूर्ण है और जब तक कोई सबूत न हो बाध्यकारी कारण जिनके लिए पुष्टि की मांग करना आवश्यक है । उनके बयान के आधार पर न्यायालय को कार्रवाई करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।यौन उत्पीड़न के पीड़ित की गवाही ही किसी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है जहां उसकी गवाही विश्वास पैदा करती है।
अपीलकर्ता ने रितेश उर्फ पप्पू मांझी को
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (पोक्सो), कोरबा ने अक्टूबर 2023 को धारा 366 के तहत
भारतीय दंड संहिता संहिता, 1860
10 वर्ष का कठोर कारावास 500/- रुपये का जुर्माना, भारतीय दंड संहिता की धारा 376(एबी) दंड संहिता, 1860
वैकल्पिक रूप से धारा 6 के तहत यौन उत्पीड़न से बच्चों की सुरक्षा अपराध अधिनियम, 2012.धारा 6 के तहत
बच्चों की सुरक्षा यौन अपराधों से
अधिनियम, 2012 आजीवन कारावास (अर्थात् उसके मरने तक) की सजा सुनाई है। सजा के खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। हाई कोर्ट ने आरोपी की अपील को खारिज करते हुए सजा को यथावत रखा है।
अभियोजन का मामला, यह है कि, 03.04.2022 को, लगभग दोपहर में
7 वर्ष के पीड़िता की मां ने पुलिस स्टेशन कोतवाली, कोरबा में लिखित शिकायत की। शिकायत में कहा गया कि 16.03.2022 को उसकी छोटी बेटी 6 बजे घर से समान लेने दुकान जाने अकेली निकली थी। अपराह्न 07.00 बजे पीड़िता वापस आई और शाम करीब साढ़े सात बजे वह बेहोश हो गया और उल्टी करने के बाद रोने लगी। पूछताछ करने पर उसने बताया कि ‘पप्पू मामा’ जबरन ले गया उसे एक कमरे में ले जाकर उसने अपने कपड़े और अंडरवियर भी उतार दिए और उसके निजी अंग अपनी उंगली डालना और साथ ही उससे अपना निजी अंग मुंह में डालकर चूसने को कहा । पीड़िता ने रोते हुए कहा आरोपी ने उसे धमकी दी है कि वह पुलिस को कुछ न बताए। उक्त जानकारी होने पर पीड़िता को कमरे में ले जाया गया। लेकिन उस समय आरोपी उपस्थित नहीं था। शिकायतकर्ता को यह नहीं पता था कि आरोपी कौन है। पीड़िता ने ‘पप्पू मामा’ कहा, लेकिन 01.04.2022 को जब वह अपने बच्चों और पति के साथ पड़ोस में शादी, देखने गई तो पीड़िता ने आरोपी पप्पू मामा को पहचान लिया।
और कहा कि वह वह व्यक्ति था जिसने यह घटना की थी।
पहचान होने के बाद पुलिस ने आरोपी रितेश उर्फ पप्पू को गिरफ्तार कर न्यायालय में चालान पेश की। न्यायालय ने पीड़िता के बयान पर आरोपी को मारने तक कैद की सजा सुनाई है। इसके खिलाफ आरोपी ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी।
अपील में कहा गया कि ट्रायल कोर्ट साक्ष्य का उचित मूल्यांकन करने में विफल रहा है
अभियोजन पक्ष द्वारा की गई जांच में अपीलकर्ता को गलत तरीके से दोषी ठहराया गया है।. पीड़िता के बयान संदेह से भरे हैं। पीड़ित की आयु की पुष्टि नहीं हुई है और न ही उसके लिए अस्थिकरण परीक्षण हुआ है।
राज्य वकील ने दलील दी कि अपीलकर्ता ने जघन्य अपराध किया है एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार, जिसकी उम्र लगभग 7 वर्ष है और अभियोजन पक्ष द्वारा उचित आधार से परे सिद्ध किया गया है।
इस प्रकार, दोषसिद्धि और सजा का निर्णय सुनाया गया है। इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा की डीबी में अपील पर सुनवाई हुई। डीबी ने अपने आदेश में कहा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून को तथ्यों पर लागू करना वर्तमान मामले में हम नहीं देखते हैं कि पीड़ित की विश्वसनीयता और/या भरोसेमंदता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। वह विश्वसनीय एवं भरोसेमंद पाई गई है। इसलिए, बिना किसी आगे की पुष्टि, अभियुक्त की सजा पर भरोसा करते हुए पीड़ित की एकमात्र गवाही कायम रखी जा सकती है। ट्रायल कोर्ट का यह मत है कि अपीलकर्ता अपराध का लेखक साक्ष्य पर आधारित तथ्य की शुद्ध खोज है। रिकार्ड में उपलब्ध है और हमारा मानना है कि मामले में, एकमात्र संभव दृष्टिकोण अदालत ने परीक्षण द्वारा लिया गया था। इसके साथ कोर्ट ने अपील खारिज किया है। आरोपी को स्वभाविक मौत तक सजा काटना होगा।