राजभाषा आयोग के आयोजन में डा.पालेश्वर प्रसाद शर्मा के प्रदेय पर चर्चा

बिलासपुर। 1 एवं 2 मार्च को होटल वुड केसल रायपुर में आयोजित राजभाषा आयोग के अष्टम अधिवेशन के प्रथम दिवस के द्वितीय सत्र “पुरखा के सुरता” के अंतर्गत छत्तीसगढ़ी साहित्य की स्मृतिशेष पांच विभूतियों डा.पालेश्वर प्रसाद शर्मा , दानेश्वर शर्मा , संत पवन दीवान , डा.विमलकुमार पाठक एवं मुकुंद कौशल के प्रदेय पर सारगर्भित चर्चा हुई। इस सत्र की अध्यक्षता डा.विनय पाठक ने की ।

सर्वप्रथम आधार वक्तव्य देते हुए भाषाविद डा.चित्तरंजन कर ने छत्तीसगढ़ी

साहित्य की विकास यात्रा को रेखांकित किया। डा. पालेश्वर प्रसाद शर्मा के प्रदेय का निरूपण करते हुए डा.देवधर महंत ने कहा कि छत्तीसगढ़ , छत्तीसगढ़ी भाषा और छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति को जानना है , तो डा. पालेश्वर प्रसाद शर्मा को जानना होगा। उनके दुर्लभ शोध प्रबंध “छत्तीसगढ़ के कृषक जीवन की शब्दावली” और उनकी कृतियों को पढ़ना होगा। डा. महंत ने आगे कहा कि डा. शर्मा ने छत्तीसगढ़ी में अनेक कालजयी कहानियां लिखकर और छत्तीसगढ़ी में ललित निबंध सृजन कर दिया छत्तीसगढ़ी गद्य को न केवल समृद्ध किया बल्कि बहुत ऊंचाइयां दी । उनके छत्तीसगढ़ी ललित निबंध तुलनात्मक रूप से हिंदी के ललित निबंधों पर भारी पड़ेंगे। 125 सप्ताह तक दैनिक नवभारत में धारावाहिक गुड़ी के गोठ लिखकर उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा का वृहद पाठक वर्ग तैयार किया। उन्हें सही अर्थों में छत्तीसगढ़ी गद्य का प्रवर्तक माना जाना चाहिए।

दानेश्वर शर्मा पर बोलते हुए रामेश्वर वैष्णव ने उन्हें छत्तीसगढ़ी का प्रथम सितारा कवि बताया। ललित शर्मा ने संत पवन दीवान की पृथक छत्तीसगढ़ आंदोलन में सक्रिय सहभागिता को उल्लेखित करते हुए उनकी गीत यात्रा को संदर्भित किया।

डा.विमलकुमार पाठक पर बोलते हुए

डा.अनुसुइया अग्रवाल ने छत्तीसगढ़ी काव्य की विकास यात्रा में उनके योगदान का स्मरण किया। सरला शर्मा ने कवि सम्मेलन के लोकप्रिय हस्ताक्षर मुकुंद कौशल की रचनाओं की विवेचना की । विशेषकर छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के क्षेत्र में उनके भूमिका को उल्लेखनीय निरूपित किया। अंत डा.विनय पाठक ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन कवि किशोर तिवारी ने किया।

kamlesh Sharma

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