सिविल जज परीक्षा 2023 के खिलाफ पेश सभी याचिका खारिज
बिलासपुर । सिविल जज परीक्षा 2023 के परिणामों को चुनौती देते हुए दायर बहुसंख्य याचिकाएं हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। याचिकाकर्ताओं ने इस आधार पर हाईकोर्ट की शरण ली थी, कि उनकी उत्तर पुस्तिकाओं को जांचा ही नहीं गया है ।
राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल जज परीक्षा 2023 (एंट्री लेवल) का अंतिम परिणाम गत 8 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित किया गया था । इस परीक्षा में शामिल हुए अभ्यर्थियों श्रेया उर्मलिया, हेमंत प्रसाद , पराग उपाध्याय , अनुराग केंवट , हेमू भारद्वाज समेत अन्य ने हाईकोर्ट में रिट पिटीशन दायर कर इस परिणाम को चुनौती देते हुए कहा कि, आयोग के परीक्षकों ने उनकी आंसर शीट को ठीक से जांचा नहीं है । इस वजह से उन सबका परिणाम प्रतिकूल रहा है * पीएससी ने सिविल जज के 49 पदों के लिए 3 सितंबर 2023 को प्राम्भिक परीक्षा आयोजित की । 24 जनवरी 2024 को इसके परिणाम आये जिसमें सभी याचिकाकर्ता सफल रहे । इसके बाद मुख्य परीक्षा गत 25 अगस्त 2024 को ली गई । इसका परिणाम 8 अक्टूबर 2024 को जारी किया गया । इस परीक्षा में पैटर्न बदले जाने की बात कही गई । इसके अनुसार अभ्यर्थियों को प्रश्न के ठीक नीचे ही दिए गये बॉक्स में उत्तर लिखना था । इस तरह क्रमानुसार ही उत्तर देने थे ।याचिकाकर्ताओं ने जवाब लिखते समय एक प्रश्न के नीचे किसी अन्य प्रश्न का जवाब लिख दिया । इसी वजह से पूर्व में दिए गये आयोग के निर्देशानुसार इन जवाबों की जांच नहीं की गई । जब मुख्य परिणाम जारी हुए तो उनमें याचिकाकर्ताओं को सफलता नहीं मिली और उन लोगों ने हाईकोर्ट में पिटीशन लगाई । जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई छत्तीसगढ़ पीएससी के अधिवक्ता डा सुदीप अग्रवाल ने पैरवी करते हुए यह तथ्य पेश किया कि,उत्तर पुस्तिका में पहले ही यह बात उल्लेखित कर दी गई थी कि, पूछे गए प्रश्न के नीचे दिए गए निर्धारित सीमित स्थान पर ही उस प्रश्न का जवाब देना है अन्यथा वह दिया गया जवाब नहीं जांचा जायेगा * स्पष्ट निर्देश के बाद भी ऐसी गलती की गई । याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि , जल्दी में वह लोग इस निर्देश पर ध्यान नहीं दे पाए , इसे माफ़ कर उनकी आंसर शीट चेक की जानी चाहिए ।
जजों की कमेटी का अभिमत
अदालत में पीएससी के अधिवक्ता डा अग्रवाल ने कहा कि, 80 प्रतिशत लोगों ने सही तरीके से ही अपने जवाब दिए हैं । सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों ने ही इस प्रकार गलती की , इनमे से 10 प्रतिशत अभ्यर्थी ही हाईकोर्ट आये हैं ।उन्होंने हाईकोर्ट को यह भी बताया कि, 15 से 20 डिस्ट्रिक्ट जजों की कमेटी मूल्यांकन करती है *इस कमेटी ने भी परीक्षा के बाद अपना अभिमत दिया था कि , हर प्रश्न के नीचे ही उसका उत्तर देना था *
हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान में ऐसे मामले नहीं हैं, जिनमें याचिकाकर्ताओं ने कुछ छोटी-मोटी गलतियाँ की हों, जैसे गलत रोल नंबर, उनकी संबंधित श्रेणियाँ, लिंग या कोई अन्य छोटी-मोटी औपचारिकताएँ। चर्चा किए गए कानून और तथ्यों के प्रकाश में, इस न्यायालय की राय में, हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है*इसके सस्थ ही सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं ।
