मूक बधिर से दरिंदगी करने वाले आरोपियों की अपील खारिज
00 एफएसएल रिपोर्ट व डीएनए टेस्ट ने आरोपियों को 25 वर्ष कैद की सजा दिलाई
बिलासपुर । मूक बधिर लड़की से सामूहिक अनाचार करने वाले दोषी आरोपियों की अपील हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद खारिज कर दी । कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही करार देते हुए कहा है कि अपीलकर्ताओं के अपराध के संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचने में ट्रायल कोर्ट ने कोई कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं की है।
जीपीएम जिला निवासी संजीव कुजूर , सूरज दास समेत पांच आरोपियों पर आईपीसी की धारा 366/34, 342/34 और 376 (डी) के तहत आरोप लगाया गया कि 25.अगस्त 2019 को शाम करीब 6-7 बजे मरवाही पुलिस स्टेशन, जिला बिलासपुर के अंतर्गत बाजार में, वे मूक-बधिर पीड़िता को जबरन मोटरसाइकिल से तालाब के पास ले गए और उससे सामूहिक अनाचार किया । शिकायतकर्ता पीड़िता की चाची, ने मरवाही पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई कि उसका बड़ा भाई उसके घर के पास रहता है, और उसकी 22 वर्षीय बेटी (पीड़िता), जो जन्म से मूक बधिर है औ, इशारों के माध्यम से बातचीत करती है जिसे वह और उसकी मां समझती है , पीड़िता हमेशा की तरह शाम को खाना (भीख) मांगने बाजार गई थी। रात ११ बजे के आसपास, वह रोती हुई घर लौटी और उसे और उसकी मां को इशारे से बताया कि जब वह शाम बाजार से लौट रही थी, पांच लड़कों ने उसे जबरदस्ती मोटरसाइकिल पर बिठाया, उसे तालाब की सीढ़ियों पर ले गए, उसके हाथ-पैर बांध दिए और एक-एक करके उसके साथ बलात्कार किया। पीड़िता ने अपने निजी अंगों में दर्द होने और चेहरे, पीठ और कमर पर खरोंच के निशान दिखाए। चाची ने अपनी भतीजी (पीड़िता) और अन्य परिवार के सदस्यों के साथ पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई। धारा : 366-ए, 376, 323, 506, एवं 34 आईपीसी के तहत अपराध क्रमांक 104/2019 दर्ज कर मामला जांच में लिया गया।
गवाहों के बयान दर्ज किए गए और जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (जी), 323, 506, 120 बी और 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, मरवाही, जिला बिलासपुर की अदालत में आरोप पत्र दायर किया, जहां से इसे 10.12.2019 को परीक्षण के लिए अतिरिक्त सत्र न्यायालय के न्यायालय को सौंप दिया गया। ट्रायल कोर्ट के जज ने आरोपीयों के खिलाफ 2.जनवरी .2020 को आईपीसी की धारा 366/34, 342/34 और 376डी के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप तय किए। मामले में आरोपियों का डीएनए टेस्ट फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर को विश्लेषण हेतु भेजाकर इसकी रिपोर्ट भी अदालत में पेश की गई । आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताते हुए हाईकोर्ट में अपील की ।
कोई कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डीबी ने सुनवाई के बाद कहा कि पर उपलब्ध साक्ष्यों पर आधारित एक विशुद्ध तथ्यात्मक निष्कर्ष है और हमारा यह मत है कि वर्तमान मामले में एकमात्र सम्भव दृष्टिकोण वही है जो विद्वान विचारण न्यायालय द्वारा लिया गया है। अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में सफल रहा है और ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के अपराध के संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं की है। इसके साथ ही अपील खारिज कर दी गई । ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को 25 वर्ष कैद की सजा सुनाई है। हाई कोर्ट ने एफएसएल व डीएनए टेस्ट पीड़िता के बयान को सजा के लिए साक्ष्य मन है।
