बिलासपुर। शंकालु पति ने बिना किसी साक्ष्य के पत्नी के चरित्र पर संदेह कर अपने ही 4 माह के मासूम से खून का रिश्ता साबित कराने हाई कोर्ट में याचिका पेश की। हाई कोर्ट ने बिना किसी ठोस साक्ष्य के मासूम की परीक्षा लेने पेश याचिका को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट से पहले परिवार न्यायालय ने अपीलकर्ता पिता को मासूम की अच्छे से पालन पोषण करने की हिदायत दी है।
पति पत्नी के बीच आपसी विवाद का एक ऐसा दृश्य सामने आया है कि इस विवाद ने मासूम को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उसने ठीक से दुनिया भी नहीं देखी और पिता ने ही खून के रिश्ते पर सवाल उठा दिया है। दरअसल पति पत्नी के बीच विवाद के बाद पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने खून पर ही सवाल उठा कर बच्चे के डीएनए टेस्ट की मांग कर दी है ।
मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने जरुरी कमेंट्स के साथ याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में फैमिली कोर्ट के निर्णय को सही ठहराने के साथ ही उसकी सराहना भी की है। दुर्ग में रहने वाले युवक की शादी बालोद में रहने वाली युवती के साथ जनवरी 2023 में दल्ली राजहरा में हुई थी। उनका चार माह का बेटा है। दोनों की शादी को दो साल ही हुए हैं। दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद शुरू हुआ, विवाद ने मनमुटाव का रूप ले लिया और यह घर की चहारदीवारी से कोर्ट तक पहुंच गया। आपसी संबंधों के बीच आशंका का बीज खुद पति ने बोया। फैमिली कोर्ट में मामला दायर करते हुए चार महीने के मासूम के रिश्ते पर सवाल उठाते हुए डीएनए टेस्ट की मांग कर डाली। मां ओर पिता की गोद में खेलने के उम्र में मासूम को घर के आंगन से निकालकर कोर्ट के दरवाजे पर ला खड़ा किया। मामले की सुनवाई के बाद फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया* फैमिली कोर्ट ने पिता को यह हिदायत भी दी कि, बच्चे का लालन पालन एक पिता की तरह करें,मासूम जिंदगी के साथ कोई दुर्भावना ना रखें।
फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता पिता को घर परिवार के बीच सामंजस्य बनाए रखने और चार महीने के बच्चे का लालन पालन अच्छे ढंग से करने की समझाइश दी थी। फैमिली कोर्ट की समझाइश का पिता पर कोई असर नहीं पड़ा। अपने अधिवक्ता के माध्यम से फैेमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी मांगों को दोहराते हुए चार महीने के मासूम का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की। मामले की सुनवाई जस्टिस दीपक तिवारी की सिंगल बेंच में हुई । प्रकरण की सुनवाई के बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, प्रथम दृष्टया ठोस प्रकरण नहीं होने पर हिन्दू रीति रिवाज से हुए विवाह के दौरान जन्म लिए बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जाना चाहिए और ना ही दिया जा सकता है* डीएनए टेस्ट का आदेश तभी दिया जाना चाहिए तब साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत पर्याप्त प्रथम दृष्टया सबूत हों।

kamlesh Sharma

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *