बिलासपुर। भारत के संविधान की अनुच्छेद 21 में व्यक्ति को सभ्य होने का अधिकार है। इस अधिकार का मतलब मानवीय गरीमा साथ जीवन है और यह अधिकार उस व्यक्ति पर भी लागू होता है, जो मर चुका है। यह व्यक्ति के मृत्यु तक लागू रहता है। मृतक को अपने जन्म भूमि में दफन होने का अधिकार है।
बस्तर जिले के  परपा थाना क्षेत्र के एर्राकोट में बुजुर्ग की मौत के तीन दिन बाद भी दो बेटों के होते हुए अंतिम संस्कार के लिए सहमति नहीं बन सकी थी। इसी मामले में हाईकोर्ट में आज जस्टिस पीपी साहू की सिंगल बेंच ने सुनवाई करत हुए छोटे पुत्र याचिकाकर्ता रामलाल को इसाई रीति से अपनी मां का अंतिम संस्कार गाँव की अपनी निजी भूमि में करने की अनुमति प्रदान कर दी है।
एर्राकोट निवासी पाण्डो कश्यप पति सुकड़ो कश्यप (70) की 28 जून की रात बीमारी के चलते मौत हो गई थी। इमके दो पुत्र है मृतिका ईसाई धर्म को मानने वाले अपने छोटे बेटे रामलाल के साथ ही एर्रकोट में रह रही थी। जबकि बड़ा बेटा  खुल्गो कश्यप जो हिन्दू धर्म को मानता है, अपने परिवार के साथ कोण्डागांव के करीब एक गांव मे रहता है । मृतक के अंतिम संस्कार में धर्म आड़े आने लगा छोटा पुत्र अपनी मां का अंतिम संस्कार ईसाई रीति से करना चाहता था किंतु ग्रामीण गांव में ईसाई क़ब्रिस्तान नही होने के कारण इसका विरोध किये। इस पर इसे धर्म मानने वाले पुत्र ने हाई कोर्ट में याचिका पेश की थी। जस्टिस पी पी साहू ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के मो लतीफ़ आगरे मामले का हवाला देते हुए कहा कि, याचिककर्ता को अपने धर्म के मुताबिक़ मां का संस्कार करने का अधिकार है । इसके साथ ही हाईकोर्ट ने मेडिकल कालेज जगदलपुर के प्राधिकारियों को मृतका का शव रामलाल को सौंपने का निर्देश दिया है और उसे कल 2 जुलाई को गाँव की निजी भूमि में ही यह शव  दफनाने की अनुमति प्रदान की है । एसपी बस्तर को किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति से बचने सुरक्षा के इंतजाम करने को कहा गया है । कोर्ट ने कहा किसी व्यक्ति के जीवन का अधिकार का कानून मृत्यु तक मैजूद रहता है। कोर्ट के आदेश पर मंगलवार को मृतक का ईसाई रिवाज से अंतिम संस्कार होगा।

kamlesh Sharma

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