पंचायत में नियुक्त शिक्षा कर्मी स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन के बाद शासकीय सेवक माने जा सकते है-हाई कोर्ट
बिलासपुर। पंचायत नियमों के तहत नियुक्त शिक्षा कर्मी तब तक ‘शासकीय सेवक’ (Government Servant) नहीं माने जा सकते, जब तक उनका स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन (absorption) नहीं हो गया।
जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास की सिंगल बेंच ने श्रीमती आभा नामदेव व अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य जुड़े मामलों
की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि पंचायत नियमों के तहत नियुक्त शिक्षा कर्मी तब तक ‘शासकीय सेवक’ (Government Servant) नहीं माने जा सकते, जब तक उनका स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन (absorption) नहीं हो गया। न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि शिक्षा कर्मी अपनी पिछली पंचायत सेवा के आधार पर 10.03.2017 के सर्कुलर के तहत क्रमोन्नति के लाभ के हकदार नहीं हैं, क्योंकि यह नियम केवल नियमित सरकारी कर्मचारियों पर लागू होता है।
याचिकाकर्ता मूल रूप से मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़ पंचायत शिक्षा कर्मी नियमों (1997, 2007 और 2012) के तहत विभिन्न पंचायतों द्वारा शिक्षा कर्मी वर्ग-1, 2 और 3 रूप में नियुक्त किए गए थे। वे लगातार पंचायत कर्मी या पंचायत शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। राज्य सरकार की नीति दिनांक 30.06.2018 के तहत, 1 जुलाई 2018 को इन शिक्षकों का स्कूल शिक्षा विभाग में संविलियन कर लिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए मांग की थी कि उनकी 10 वर्ष की सेवा पूरी होने पर उन्हें प्रथम और द्वितीय क्रमोन्नति का लाभ दिया जाए। उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी 10 मार्च 2017 के सर्कुलर का हवाला दिया और श्रीमती सोना साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में डिवीजन बेंच के फैसले को आधार बनाया। उनका तर्क था कि उन्हें लाभ न देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि उन्होंने 10 साल की सेवा पूरी कर ली है, इसलिए वे क्रमोन्नति के हकदार हैं। उन्होंने कहा कि सोना साहू मामले में डिवीजन बेंच ने समान राहत दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य की अपील खारिज कर दी थी। उन्होंने रवि प्रभा साहू केस का भी उदाहरण दिया और कहा कि यदि सिंगल बेंच इससे सहमत नहीं है, तो मामले को बड़ी बेंच (Larger Bench) को भेज दिया जाए।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि शिक्षा कर्मी स्थानीय निकायों (पंचायतों) द्वारा नियुक्त किए गए थे और उनका कैडर नियमित सरकारी शिक्षकों से अलग था। सरकार ने दलील दी कि 1999 की क्रमोन्नति योजना और 2017 का सर्कुलर केवल सरकारी कर्मचारियों के लिए है। कोर्ट ने सभी 1188 याचिकाएं खारिज कर दीं।
