शक और अधूरे सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बहुचर्चित कृष्णा गुप्ता हत्याकांड मामले में हत्या के पांचों आरोपीयों को “डाउट ऑफ बेनिफिट” देते हुए बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि संदेह चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, वह सबूत का स्थान नहीं ले सकता।
दरअसल पूरे हत्याकांड मामले में पकड़े गए पांचों आरोपीयों के मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की और कहा कि, गवाहों की गवाही पूरी तरह से विरोधाभास है, एफएसएल रिपोर्ट अधूरी है और साथ ही पहचान में देरी के साथ ठोस सबूतों के अभाव में आरोप भी सिद्ध नहीं होता । 21 जुलाई 2017 को बलरामपुर जिले के बगरा गांव में खेत जोतते समय किसान कृष्णा गुप्ता की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। शव खेत में खून से लथपथ मिला था और सिर मिट्टी में दबा हुआ था। घटना के बाद पुलिस ने मृतक के परिजनों के बयान और संदेह के आधार पर गांव के ही मुखलाल साव, अशोक पाल, सुधामा भुइयां, श्रवण कुमार और सुनील पासवान को गिरफ्तार किया था* मामले की जांच में चाकू, कपड़े और दस्ताने जब्त किए गए थे, लेकिन एफएसएल रिपोर्ट में खून का ग्रुप मृतक से मेल नहीं खा पाया, गवाहों के बयान भी विरोधाभासी निकले। पत्नी लालती देवी को पुलिस ने प्रत्यक्षदर्शी बताया था, लेकिन उसने अदालत में माना कि, आरोपियों की पहचान उसने पहली बार पुलिस हिरासत में देख कर की थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि. संदेह चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, वह सबूत का स्थान नहीं ले सकता। न तो साजिश का सबूत मिला और न ही आरोपियों से हत्या का कोई पुख्ता संबंध इसलिए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है। कोर्ट ने साफ कहा कि. सिर्फ शक और अधूरे सबूतों के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।