मासूम के हित मे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
मामा को कस्टडी में देना बच्चे का सर्वोत्तम हित होगा-हाई कोर्ट
00 मासूम के जन्म के 15 दिन बाद मा की मौत हो गई, तब से वह मामा के संरक्षण में है
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में जब मासूम महज 15 दिन का था कि सिर से माँ का आँचल छीन गया। पहाड़ जैसे संकट में अबोध मासूम को गले से लगाया व पालन पोषण किया। जन्मदाता पिता ने कुछ समय बाद दूसरी शादी कर ली। मासूम जब चार वर्ष का हुआ तो उसका पिता होने का प्यार जागा व बच्चे की कस्टडी पाने अदालत की शरण ली। हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय पारित कर कहा बच्चे का हित सर्वोत्तम होगा कि वह मामा के कस्टडी में रहे। जैविक पिता को बच्चे से मिलने की छूट दी है।
8 साल के बच्चे की कस्टडी का हक उसके मामा के पक्ष में दिया है। मां की मौत के बाद फैमिली कोर्ट ने उसके मामा को बच्चे का पालन-पोषण करने का अधिकार दिया था, जिसे पिता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। साथ ही पिता को अपने बेटे की परवरिश करने के अधिकार से वंचित रखा है। हालांकि, डिवीजन बेंच ने पिता को वीडियो कॉल, छुट्टियों और त्योहारों पर बेटे से मिलने का हक दिया है।
कबीरधाम में रहने वाले याचिकाकर्ता की पहली पत्नी रागिनी सिंह का 12 मार्च 2017 को प्रसव के कुछ दिन बाद निधन हो गया था। मां की मौत के बाद से नवजात शिशु अपने मामा के साथ रह रहा है। अब वो 8 साल का हो गया है। उसके मामा ललित सिंह ने बच्चे की कस्टडी को लेकर फैमिली कोर्ट में मामला प्रस्तुत किया था। इसमें बताया कि बच्चे के पिता ने पत्नी की मौत के एक साल बाद दूसरी शादी कर ली और उस रिश्ते से उनकी एक बेटी भी है। इस दौरान बच्चे को उसके पिता ने अपने साथ ले जाने के लिए कोई कोशिश नहीं की। जिसके बाद मामा ने गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत बच्चे की कस्टडी की मांग की थी। फैमिली कोर्ट ने मामा की अर्जी को स्वीकार करते हुए उनके पक्ष में फैसला दिया। साथ ही बच्चे की कस्टडी का अधिकारी माना।
पिता ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील की। इसमें कहा कि वो स्वाभाविक अभिभावक हैं और बेटे की बेहतर परवरिश कर सकते हैं। दूसरी तरफ बच्चे के मामा ने भी अपना पक्ष रखा और भांजे के बेहतर परवरिश की आवश्यकता बताई। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के तर्क और साक्ष्यों को देखने के बाद पाया कि पिता ने कभी बेटे को अपने पास लाने की कोशिश नहीं की। बच्चा बचपन से मामा के साथ रह रहा है और वहां सुरक्षित है। ऐसे में अब 8 साल का बच्चा अपने पिता और सौतेली मां के पास असहज महसूस करेगा।