बिलासपुर । सिर्फ दस्तावेजों में अलग-अलग नाम होने के कारण अस्वीकार किये गये ग्रेच्युटी और फेमिली पेंशन के मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने मृतक एसईसीएल कर्मचारी की पत्नी को स्वीकार्य सेवानिवृत्ति बकाया राशि आदेश की प्रति मिलने से 60 दिन के अंदर देने का आदेश दिया है ।
ऐसा न करने पर इस रिट याचिका के दाखिल होने की तिथि से 11.04.2023 तक 6 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देना होगा । कोर्ट ने प्रतिवादियों के बीच स्पष्टीकरण आवश्यक होने पर उसे भी इसी अवधि के भीतर करने को कहा है । सुखमनिया उर्फ़ सुखानी व् चुकनी के पति स्व. लक्ष्मण गायत्री माइंस विश्रामपुर एसईसीएल में हैमरमेन के तौर पर पदस्थ थे । सेवाकाल में ही गत 30 सितंबर 2019 को उनका निधन हो गया । सुखमनिया और उनके बेटे ने अनुकम्पा नियुक्ति और लंबित देयकों के भुगतान के लिए अधिवक्ता जयप्रकाश शुक्ला के माध्यम से हाईकोर्ट में शरण ली । कोर्ट ने भुगतान का निराकरण करने का आदेश दिया । इसके बाद एसईसीएल प्रबंधन ने बताया कि, दस्तावेजों में इनका नाम अलग अलग दर्ज है इसलिए भुगतान नहीं हो सकता है । अपने नाम की समुचित घोषणा के लिए सुखमनिया ने सिविल जज सूरजपुर के यहाँ सिविल परिवाद दाखिल किया । सिविल जज ने गत 12 अगस्त 2022 को इनके पक्ष में डिक्री पारित कर दी , बताया गया कि सारे नाम याचिकाकर्ता के ही हैं । इस बीच याचिकाकर्ता के बेटे अलोक को अनुकम्पा नियुक्ति प्रदान कर दी गई । हाईकोर्ट में जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की अदालत में हुई इस सुनवाई में एसईसीएल ने बताया कि , हमने सीएमपीएफ कमिश्नर जबलपुर को प्रकरण भेज दिया था । कोर्ट ने याचिका मंजूर करते हुए कहा कि स्वीकार्य सेवानिवृत्ति की बकाया राशि इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से 60 दिनों की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को भुगतान की जाए ऐसा न करने पर इस रिट याचिका के दाखिल होने की तिथि से 11.04.2023 तक 6 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देना होगा । कोर्ट ने कहा कि यदि प्रतिवादियों के बीच कोई स्पष्टीकरण आवश्यक है, तो वह भी इसी अवधि के भीतर किया जाये ।

kamlesh Sharma

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