हाई कोर्ट ने पहचान परेड की प्रक्रिया में भारी खामियां होने पर दुष्कर्म के आरोपी को बरी किया
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत उम्रकैद की सजा पाए एक दोषी को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि पुलिस द्वारा पहचान परेड (Test Identification Parade) की प्रक्रिया में भारी खामियां थीं और अभियोजन पक्ष आरोपी को अपराध से जोड़ने वाली
परिस्थितियों की कड़ी साबित करने में विफल रहा। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि भले ही यह साबित हो गया हो कि अपराध घटित हुआ है, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि अपराध अपीलकर्ता ने ही किया है।
प्रसेन कुमार भार्गव द्वारा सजा के खिलाफ अपील दायर की गई थी, जिन्हें बलौदाबाजार की विशेष अदालत (FTSC POCSO) ने 8 जुलाई 2022 को आईपीसी की धारा 450, 363,506-II और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अभियोजन पक्ष का मामला था कि 26 सितंबर 2019 की रात, एक 11 वर्षीय नाबालिग लड़की को उसके घर से सोते समय अपहरण कर लिया गया। पीड़िता का आरोप था कि उसे एक “कैप्सूल-नुमा” वाहन में ले जाया गया और उसके साथ दुष्कर्म किया गया। जांच के दौरान पुलिस ने अपीलकर्ता का एक वाहन जब्त किया और पहचान परेड (TIP) के दौरान पीड़िता द्वारा आरोपी की पहचान कराई गई। अपीलकर्ता के अधिवक्ता, तर्क दिया कि पूरी जांच प्रक्रिया दोषपूर्ण थी। उनका मुख्य तर्क यह था कि पीड़िता आरोपी को पहले से नहीं जानती थी, लेकिन औपचारिक पहचान परेड से पहले ही आरोपी को थाने में पीड़िता और गवाहों को दिखा दिया गया था। इसके अलावा,
पहचान परेड जेल के बजाय सिंचाई विभाग के रेस्ट हाउस में आयोजित की गई थी, जो नियमों का उल्लंघन है। बचाव पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर परेड से पहले आरोपी को गवाह को दिखा दिया जाए, तो पहचान का कोई महत्व नहीं
रह जाता।राज्य की ओर से निचली अदालत के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि नाबालिग पीड़िता का बयान स्वाभाविक व विश्वसनीय है। उन्होंने तर्क दिया कि वाहन की बरामदगी और पीड़िता द्वारा आरोपी की पहचान करना अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त है।
हाईकोर्ट ने कहा कि ”मेडिकल रिपोर्ट से यह साबित होता है कि पीड़िता के साथ दुष्कर्म हुआ था, लेकिन मेडिकल राय केवल अपराध की पुष्टि करती है, अपराधी की पहचान नहीं करती, इसके साथ ही आरोपी को दोषमुक्त कर दिया।
