• डराने वाला आंकड़ा “5 साल में 40 हजार से ज्यादा बच्चों की मौत
    इनमें 25 हजार से अधिक नवजात
    अस्पतालों में ऑक्सीजन देने जैसी सुविधाएं नहीं
    प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद का आंकड़ा
    बिलासपुर। हाई कोर्ट ने प्रदेश में 2019-2023 तक 0-5 साल तक के 40 हजार बच्चों की मौत के सम्बंध में प्रकाशित खबर को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर सुनवाई शुरू की है। पहली सुनवाई में शासन की ओर से एजी ने जवाब के लिए समय लिया है।
    प्रकाशित खबर के अनुसार प्रदेश में बच्चों के इलाज के लिए जरूरी सेटअप नहीं। उपरोक्त समाचार रिपोर्टिंग से पता चलता है कि पिछले 5 वर्षों में, 0-5 वर्ष की आयु के 40,000 से अधिक बच्चों की मृत्यु हो गई है, जिनमें से 25,000 से अधिक बच्चे 28 दिनों तक भी जीवित नहीं रह सके, जिसका अर्थ है कि मृत जन्म की संख्या ऊपर है। 24,000. मृत जन्म की औसत संख्या प्रति वर्ष 4,000 है और 2019- 2023 के बीच, 3,000 से अधिक गर्भवती महिलाओं की मृत्यु हो गई थी। ये आंकड़े सार्वजनिक डोमेन में जारी नहीं किये जा रहे हैं. शिशुओं की मौत का कारण एनीमिया, कुपोषण और नवजात शिशुओं की देखभाल की व्यवस्था का अभाव है।
    2023, 3,000 से अधिक गर्भवती महिलाओं की मृत्यु हो गई थी। ये आंकड़े 4जी सार्वजनिक डोमेन में जारी नहीं किए जा रहे हैं। डेथ पाइन शिशुओं का उपयोग एनीमिया कुपोषण और नवजात शिशुओं की देखभाल की व्यवस्था की कमी के कारण होती है। प्रकाशित प्रकाशित खबर जिसमें पांच नवजात शिशुओं को एक ही वार्मर में रखा गया है, जबकि विशेषज्ञ के अनुसार प्रत्येक नवजात को अलग-अलग वार्मर में रखा जाना चाहिए। उपरोक्त समाचार रिपोर्ट यह भी बताती है कि सरकारी अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर की कमी है। जो आवश्यकता का आधा है । उपरोक्त समाचार राज्य में नवजात शिशु देखभाल के संबंध में चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है। महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन. भरत और राज्य की ओर से उपस्थित वकील विनय पांडेय, वकील राघवेंद्र प्रधान को सुना। विद्वान राज्य के वकील को उपरोक्त समाचार रिपोर्टिंग के संबंध में निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया गया । कोर्ट ने अतिरिक्त मुख्य सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, मामले में अपना व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले को 08.05.2024 को पुनः सूचीबद्ध किया गया है।
kamlesh Sharma

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