किसी भी व्यक्ति को अपने सहकर्मियों की मृत्यु का कारण बनकर अपना गुस्सा निकालने का अधिकार नहीं-हाई कोर्ट
00 आरोपी ने दिसम्बर 2017 में नक्सली मोर्चा में तैनात अपने ही साथियों को गोली मारकर हत्या की
बिलासपुर । घायल चश्मदीद गवाह की गवाही का साक्ष्य के रूप में बहुत महत्व होता है। ऐसी गवाही को तब तक अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता जब तक कि उसमें पर्याप्त विसंगतियां या विरोधाभास न हों जो उनकी विश्वसनीयता को कमज़ोर करते हों।
इस आशय के निर्देश के साथ ही हाईकोर्ट ने चार लोगों की जान लेने वाले आरोपी सशस्त्र बल के कांस्टेबल की क्रिमिनल अपील खारिज कर दी । संत कुमार निवासी यूपी सीआर पीएफ बटालियन केम्प बासागुडा बस्तर में कांस्टेबल पदस्थ था । इसका सब इंस्पेक्टर विक्की शर्मा से ड्यूटी के समय को लेकर विवाद चल रहा था । 9 दिसंबर 2017 की शाम साढ़े चार बजे बटालियन परिसर में ही इसका दोबारा झगड़ा हो गया । संत कुमार ने अपनी सर्विस रायफल ए के 47 से सब इंस्पेक्टर विक्की शर्मा , ए एस आई राजीव सिंह , मेघ सिंह पर फायर कर इन्हें मोके पर ही मार डाला । एस आई गजानंद घयल हुआ , उसने किसी तरह दौड़कर जान बचाई कांस्टेबल शंकर राव जो मनोरंजन कक्ष में छिपा हुआ था उसे भी इसने फायर कर मार डाला । इस तरह इसने 4 कि हत्या कर एक को घायल किया था। एफ़ाइआर के बाद इसे गिरफ्तार किया गया और सेशन कोर्ट में मामला चलाया गया । ट्रायल कोर्ट ने इसे भादवि की धारा 307 और 302 का दोषी मानते हुए अलग अलग 7 साल की सजा सुनाई । इसके खिलाफ ही आरोपी ने हाईकोर्ट में क्रिमिनल अपील की ।हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डीबी में सुनवाई हुई । कोर्ट ने तर्कों व बहस के बाद माना कि , सशस्त्र बलों के कर्मियों की कार्य स्थितियां अत्यंत खतरनाक तथा घातक हो सकती हैं, जिसमें युद्ध तथा शांति दोनों ही स्थितियों में विभिन्न प्रकार के खतरों का सामना करना शामिल है। इन खतरों से तत्काल तथा दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं, चोटें तथा यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है। बिना छुट्टी के लंबे समय तक काम करना तथा कठिन वातावरण किसी भी व्यक्ति को अपने सहकर्मियों की मृत्यु का कारण बनकर अपना गुस्सा निकालने का अधिकार नहीं देता है।अपीलकर्ता सशस्त्र बल का सदस्य होने के नाते नक्सलियों से क्षेत्र के लोगों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था, लेकिन अपने कर्तव्य का पालन करने के बजाय, अपीलकर्ता ने साथी सदस्यों पर दो असॉल्ट राइफलों से अंधाधुंध गोलीबारी करके एक कठोर कदम उठाया, जो किसी भी तरह से आईपीसी की धारा 304 भाग 1 या II के अंतर्गत नहीं आता है।
.यह दिया अंतिम आदेश
डीबी ने कहा कि, अभियोजन पक्ष के गवाहों द्वारा दिए गए बयान के विश्लेषण से, हम इस राय के हैं कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में सफल रहा है और परीक्षण न्यायालय ने अपीलकर्ता/दोषी के अपराध के संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई कानूनी या तथ्यात्मक त्रुटि नहीं की है। तदनुसार, अपील में कोई दम नहीं होने के कारण इसे खारिज किया जाता है।