चाइल्ड हेल्प लाइन ने दुष्कर्म पीड़िता बच्ची को न्याय दिलाई

00 रक्षक द्बारा अस्मत लूटे जाने पर घर से भागी थी

बिलासपुर। घर से भागे बच्चों की रेस्क्यू करने वाली एनजीओ चाइल्ड हेल्प लाइन के सदस्य ने रायपुर स्टेशन में भीख मांग कर जीवन यापन कर रही दुष्कर्म पीड़िता को संरक्षण में लेकर उसके साथ दुष्कर्म करने के आरोपी को सजा दिलाई। सत्र न्यायालय ने आरोपी को प्राकृतिक मौत तक कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। आरोपी ने इसके खिलाफ अपील पेश की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल की डीबी ने पीड़िता की आयु सिद्ब नहीं होने पर आरोपी की प्राकृतिक मौत तक कठोर कारावास की सजा को 20 वर्ष किया है।

हाई कोर्ट ने आरोपी द्वारा झूठा फसाने तर्क दिए जाने पर टिप्पणी करते हुए कहा यदि मामले में प्रदर्शित परिस्थितियों की समग्रता से यह पता चलता है कि अभियोक्ता के पास आरोपित व्यक्ति को झूठा फसाने का कोई मजबूत मकसद नहीं है, तो न्यायालय को सामान्यतः उसके साक्ष्य को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।

चाइल्ड हेल्प लाइन एनजीओ की सदस्य  की नजर रायपुर स्टेशन के आसपास भीख मांगने एवं रात को स्टेशन के वेटिंग हाल में सोने वाली डरी सहमी बच्ची पर नजर पड़ी। उन्होंने बच्ची को रेस्क्यू करने के बाद आश्रम भेजा। पूछताछ में बच्ची ने बताई कि वह जब छोटी थी तब उसकी मां की मौत हो गई। मां की मौत के बाद पिता के साथ रहती थी व मजदूरी का काम करती है। उसका पिता उसके पैसे शराब पीने के लिए ले लेता था। फरवरी 2019 की एक रात वह कमरे में सोई थी, उसी समय उसका पिता आया और जान से मारने की धमकी देते हुए बालात्कार किया। इसके दूसरे दिन उसके साथ फिर से मारपीट किया। इस पर वह घर से भाग कर स्टेशन आई एवं रायपुर स्टेशन के आसपास भीख मांग कर खाती है व रात में स्टेशन में ही सोती है। उसकी बात सुनकर एनजीओ ने रायपुर के माना केम्प थाने में लिखित शिकायत की। पुलिस ने मेडिकल जांच एवं अन्य कार्रवाई कर आरोपी को गिरफ्तार कर जेल दाखिल किया एवं न्यायालय में चालान पेश किया। सत्र न्यायालय ने 376, पाक्सो एक्ट के तहत आरोपी को प्राकृतिक मौत तक कठोर कारावास एवं 500 रूपये अर्थदंड की सजा सुनाई। इसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील पेश की। अपील में कहा गया कि आरोपी के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है। अपीलकर्ता और अभियोजन पक्ष का मामला अनुमान पर आधारित है। इसलिए अपीलकर्ता को बरी किया जाए। बयान में विरोधाभास है।  इसमें कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य नहीं है। पीड़िता को नाबालिग दर्शाया गया जबकि जन्म प्रमाण पत्र रिकॉर्ड पर ले लिया गया है।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भारत के परंपरा से बंधे गैर-अनुमोदनात्मक समाज में कोई लड़की या महिला ऐसी घटना जिससे उसकी पवित्रता पर असर पड़ने की संभावना हो कभी स्वीकार नहीं करेगी। वह खतरे के प्रति सचेत होगी समाज द्बारा बहिष्कृत और जब इन कारकों का सामना करना पड़ता है अपराध प्रकाश में लाया जाता है, इसमें अंतर्निहित आश्वासन होता है कि आरोप यह निर्मित होने के बजाय वास्तविक है। वस्तु समाज की उदासीनता के रवैये पर एक दुखद प्रतिबिब है यौन अपराधों के पीड़ितों की मानवीय गरिमा के उल्लंघन है। हमें याद रखना चाहिए कि एक बलात्कारी न केवल पीड़िता का अपमान करता है गोपनीयता और व्यक्तिगत अखंडता, लेकिन अनिवार्य रूप से गंभीर कारण बनती है मामले के उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, विशेषकर पीड़िता के साक्ष्य से यह बिल्कुल स्पष्ट है अभियोजन पक्ष द्बारा प्रस्तुत दस्तावेजी एवं मौखिक साक्ष्य रिकॉर्ड और उसका विश्लेषण जो अपीलकर्ता ने जबरदस्ती किया है। आईपीसी की धारा 376(3) को बरकरार रखा जाता है। हाईकोर्ट ने प्राकृतिक मौत तक कठोर कारावास को 20 वर्ष कैद की सजा में बदला है।यदि मामले में प्रदर्शित परिस्थितियों की समग्रता से यह पता चलता है कि अभियोक्ता के पास आरोपित व्यक्ति को झूठा फसाने का कोई मजबूत मकसद नहीं है, तो न्यायालय को सामान्यतः उसके साक्ष्य को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।

 

kamlesh Sharma

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