न्यायिक निर्णय ठोस कानूनी साक्ष्य पर आधारित होने चाहिए -चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा
00 हम सुनिश्चित करें कि किसी निर्दोष को दंडित न किया जाए और वास्तविक पीड़ित को न्याय मिले”
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी द्वारा 01/02/2025 से 14/02/2025 तक नव-पदोन्नत 42 जिला न्यायाधीशगण (प्रवेश स्तर) के लिए आयोजित ओरिएंटेशन कोर्स के समापन सत्र को मुख्य न्यायाधिपति न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा, छत्तीसगढ उच्च न्यायालय बिलासपुर के द्वारा संबोधित किया गया।
मुख्य न्यायाधिपति ने अपने विचारोत्तेजक व प्रेरणादायक संबोधन में नव-पदोन्नत जिला न्यायाधीशगण को बधाई देते हुए उन्हें नई भूमिका के साथ आने वाली जिम्मेदारी के संबंध में याद दिलाया और कहा कि अब आपके कंधो पर बड़ी जिम्मेदारी है और जो लोग न्याय की उम्मीद में आपके न्यायालय में आते हैं वे आपसे हर फैसले में ईमानदारी, पारदर्शिता व निष्पक्षता की उम्मीद करते हैं। अतः आपको पूर्ण समर्पण व विधि अनुसार पारदर्शिता के साथ न्याय प्रदान करना है जिससे न्याय की उम्मीद में आने वाले पक्षकार संतुष्ट हो सकें।
मुख्य न्यायाधिपति ने जोर दिया कि न्यायाधीशों को जवाबदेह रहना चाहिए और व्यक्त किया कि न्यायिक आचरण और निर्णयों की आलोचना प्रणाली का स्वाभाविक हिस्सा है, सकारात्मक आलोचना हमें परिष्कृत करने में मदद करती है और हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन विधि के अनुरूप करना चाहिए।
मुख्य न्यायाधिपति ने इस बात को महत्वपूर्ण रूप से रेखांकित किया कि एक न्यायिक निर्णय को लोक भावना के बजाय ठोस कानूनी साध्य पर आधारित होना चाहिए। मुख्य न्यायाधिपति ने कहा कि समाज के नजर में एक अपराध विभत्स हो सकता है लेकिन यदि कानून के नजर में कोई ठोस सबूत नहीं है तो हम व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकते। हमारा कर्तव्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी निर्दोष को दंडित न किया जाए और वास्तविक पीड़ित को न्याय मिले ।
मुख्य न्यायाधिपति ने कमजोर या अपर्याप्त सबूतों के आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराए जाने के संबंध में सचेत करते हुए कहा कि दोषपूर्ण जांच या कमजोर व अविश्वसनीय सबूतों के कारण निचली अदालत की दोषसिद्ध का फैसला अपील में उलट जाता है। ऐसी दशा में न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि निर्णय लेने में स्थापित विधिक मापदण्डों का पालन किया जाए। उन्होंने आगे कहा न्यायपालिका में जनता का विश्वास बनाए रखने व न्यायपालिका की न्याय व निष्पक्षता को बनाए रखने में अद्धितीय स्थिति पर जोर देते हुए कहा कि राज्य के अन्य अंगों से इतर न्यायाधीशों के लिए उच्च नैतिक मापदण्ड हैं और उनके कृत्य को दैवीय कृत्य माना जाता है। ऐसी दशा में न्यायाधीशगण के उपर महती जिम्मेदारी है कि वह पारदर्शिता व निष्पक्षता बनाए रखें और यह सुनिश्चित करें कि लोगों का न्यायिक प्रणाली में विश्वास बना रहेगा। विशेष जोर दिया कि हमारा हर फैसला, न्यायपालिका में लोगों का विश्वास मजबूत करने वाला होना चाहिए। मुख्य न्यायाधिपति ने न्यायाधीशगण को न्याय बनाए रखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को याद दिलाते हुएकहा कि वे अपने निर्णयों
के प्रति बहुत सावधान रहें और अखण्डता और निष्पक्षता के कार्य करें, ” न्यायपालिका का भविष्य और उसमें जनता का विश्वास आपके हाथों में है”।
मुख्य न्यायाधिपति का यह प्रभावशाली उद्बोधन युवा न्यायाधीशगण के लिए प्रेरणा का स्त्रोत एवं मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगा और उन्हें अपनी नई जिम्मेदारियों को अधिक प्रभावी व न्यायपूर्ण ढंग से निर्वहन करने के लिए प्रेरित करेगा। इस अवसर पर छत्तीसगढ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश व बिलासपुर जिले के पोर्टफोलियो न्यायाधीश एवं अध्यक्ष कमेटी टू मानीटरिंग द फंक्शनिंग आफ सीएसजेए श्रीमती न्यायमूर्ति रजनी दुबे की भी गरिमामयी उपस्थिति थी । इस अवसर पर रजिस्ट्रार जनरल, डायरेक्टर छत्तीसगढ ज्यूडिशियल एकेडमी सहित रजिस्ट्री व राज्य न्यायिक अकादमी के अधिकारीगण उपस्थित थे।
