बस्तर में पास्टर का शव दफनाने के विवाद पर निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा चिन्हाकित जगह में ही अंतिम संस्कार करने कानून बना है, लोक व्यवस्था का सिद्धांत के तहत अनुमति दी जा सकती है
बिलासपुर। पुत्र द्वारा अपने पिता के अंतिम संस्कार हेतु सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए युगलपीठ के दोनों जजों का मत अलग लग होने पर भी संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए मुकदमे को रेफर करने से इनकार कर दिया । इसके साथ ही याचिकाकर्ता के पिता का शव कड़कापाल के कब्रिस्तान में ही दफनाने का निर्देश दिया। राज्य शासन को इसके लिए कानून व्यवस्था बनाये जाने का निर्देश भी दिया है ।
बस्तर के दरभा निवासी याचिकाकर्ता रमेश बघेल के पास्टर पिता की 7 जनवरी को मृत्यु हो गई थी। उनकी मौत के बाद से याचिकाकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने ईसाईयों के लिए सुरक्षित जगह के बजाय उनका गांव के आम कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार करने की तैयारी की थी। लेकिन, इसकी जानकारी होने पर गांव के लोगों ने विरोध कर दिया और तनाव की स्थिति निर्मित हो गई। गांव वालों ने दावा कि किसी ईसाई व्यक्ति को उनके गांव में दफनाया नहीं जा सकता, चाहे वह गांव का कब्रिस्तान हो या याचिकाकर्ता की अपनी निजी भूमि। जिसके बाद रमेश बघेल ने अपने पिता का शव अपनी खुद की जमीन पर दफन करने और सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता ने इसके लिए पहले स्थानीय अधिकारियों के साथ ही सरकार से सुरक्षा और मदद मांगी थी। जहां से मदद नहीं मिलने पर उन्हें हाईकोर्ट आना पड़ा। याचिका में कहा कि छत्तीसगढ़ ग्राम पंचायत नियम, 1999 के प्रावधानों के अनुसार मृत व्यक्ति के धर्म की रीति के अनुसार शवों के अंतिम संस्कार के लिए जगह उपलब्ध कराना ग्राम पंचायत की जिम्मेदारी है। शासन के वकील ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता अपने मृत पिता का अंतिम संस्कार गांव छिंदवाड़ा से 20-25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नजदीकी गांव करकापाल में करता है, जहां ईसाइयों का एक अलग कब्रिस्तान है, तो कोई आपत्ति नहीं होगी।शासन का पक्ष सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दी थी। इसके बाद ही पुत्र ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली । सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश शर्मा ने अलग – अलग आदेश दिया । जस्टिस नागरत्ना ने कहा कोई भी व्यक्ति अपनी निजी जमीन में शव को दफना सकता है । पंचायत यदि इस पर इंकार कर रही है तो यह संविधान के विपरीत है । दूसरी ओर जस्टिस सतीश शर्मा ने कहा कि कानून बना हुआ है कि , चिन्हांकित स्थान पर ही अंतिम संस्कार होगा । लोक व्यवस्था सिद्धन्त का ध्यान रखते हुए इसकी अनुमति दी जाति है तो व्यवस्था बिगड़ जायेगी । इस तरह इस आदेश में हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन किया गया । मत भिन्नता के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्धारित जगह में ही अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी है।
नहीं किया रेफर
दोनों जजों की राय अलग अलग होने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने भी संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए मुकदमे को अन्य बेच या लार्जर बेंच में रेफर करने से इनकार कर दिया। दोनों ने मिलकर एक निर्णय दिया और पुत्र को शव निर्धारित स्थल पर दफनाने की अनुमति देकर याचिका निराकृत कर दी ।राज्य शासन की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट तुषार मेहता, प्रफुल्ल भारत , कौस्तुभ शुक्ला , रोहित शर्मा उपस्थित हुए ।
