बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का ताजा फैसला प्रदेश के लाखों कर्मचारियों के लिए राहत वाली है। 8वीं बटालियन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल के कंपनी कमांडर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि विभागीय अफसरों के दबाव में आकर कर्मचारियों ने सहमति पत्र में हस्ताक्षर कर दिया है, तब भी सेवाकाल के दौरान या रिटायरमेंट के बाद वेतन से रिकवरी नहीं हो सकती। विभागीय अफसर द्वारा जारी रिकवरी आदेश को रद करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता से वसूली गई राशि का तत्काल भुगतान करने का निर्देश दिया है।
एस मनोहरदास, 8वीं बटालियन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल, राजनांदगांव में पुलिस विभाग में कंपनी कमांडर के पद पर पदस्थ थे। सेनानी 8वीं वाहिनी, राजनादगांव द्वारा एस. मनोहरदास को सेवाकाल के दौरान 01.01.2006 से 01.07.2018 तक त्रुटिपूर्ण ढंग अधिक वेतन भुगतान का हवाला देते हुए विरूद्ध वसूली आदेश जारी कर उनके वेतन से वसूली प्रारंभ कर दी। कंपनी कमांडर एस. मनोहरदास ने अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय एवं दुर्गा मेहर के माध्यम से हाई कोर्ट बिलासपुर के समक्ष रिट याचिका दायर कर वसूली आदेश को चुनौती दी। मामले की सुनवाई जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने कोर्ट के समक्ष पैरवी करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्टेट आफ पंजाब विरूद्ध रफीक मसीह एवं अन्य, थामस डेनियल विरूद्ध स्टेट आफ केरल के उस आदेश का हवाला दिया जिसमें किसी भी तृतीय श्रेणी कर्मचारी से पूर्व के वर्षों में अधिक भुगतान का हवाला देकर उनके वेतन से किसी भी प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी है कि यदि किसी शासकीय कर्मचारी ने आला अफसरों के दबाव में आकर सेवाकाल के दौरान लिखित सहमति (Undertaking) दे दी है तब भी उक्त शासकीय कर्मचारी के वेतन से किसी भी प्रकार की राशि की वसूली नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट के सामने छत्तीसगढ़ वेतन पुनरीक्षण अधिनियम में दी गई व्यवस्थाओं का भी जिक्र किया है।

kamlesh Sharma

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