संदेह जितना भी मजबूत हो वह साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता-हाई कोर्ट
बिलासपुर। हाई कोर्ट ने दोहरे हत्याकांड के आरोपितों को दोषमुक्त किये जाने के खिलाफ पेश शासन की अपील को यह कहते हुए खारिज किया कि संदेह चाहे जितना भी मजबूत हो वह निर्णय में साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता है। मामले में गवाहों के बयान भी विरोधाभाषी है।एक मृतक का पीएम रिपोर्ट भी पेश नहीं किया गया।
मामला यह है कि मृतक मोहन लाल बंदे, संजय बंदे 23 अप्रैल 2009 को एक विवाह समारोह में शामिल होने जयराम नगर गए थे। रात में मोहनलाल बंदे मोबाइल से लड़की व महिलाओं का फोटोशूट करने लगा। इस बात पर मौके में झगड़ा हुए। मारपीट में घायल हुए मोहनलाल ने रात 3.30 बजे मस्तूरी थाना में रिपोर्ट लिखाई। पुलिस ने घायलों को मस्तूरी स्वास्थ्य केंद्र लेकर गई। डॉक्टर ने जांच उपरांत मोहनलाल व संजय बंदे को ज्यादा चोट होने पर सिम्स रिफर किया व जख्मी मनीष को सामान्य चोट होने पर इलाज कर छोड़ दिया गया। सिम्स में संजय की मौत हो गई व मोहनलाल को अपोलो में भर्ती किया गया। उपचार के दौरान उसकी भी मौत हो गई। पुलिस ने मामला दर्ज कर रामकुमार बंदे, राजेन्द्र, शैलेश सहित 8 लोगो को गिरफ्तार कर न्यायालय में बलवा व हत्या का चालान पेश किया। 26 फरवरी 2011 को ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया। इसके खिलाफ शासन ने हाई कोर्ट में अपील पेश की। अपील पर जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डीबी में सुनवाई हुई। डीबी ने पेश रिकार्ड का बारीकी से अवलोकन व जांच उपरांत निर्णय पारित करते हुए अपने आदेश में लिखा यह स्पष्ट है कि घटना 23 अप्रैल 2009 को मृतक- मोहन लाल बंदे वहाँ था । उसने अत्यधिक शराब पी ली, जिसके कारण वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गया। और मृतक-मोहन के पेट में बहुत दर्द रहता था, जिसका इलाज चल रहा था और उसी दौरान उनकी मौत हो गई। इस बात को छोड़कर. उनके पेट में ऐसा कोई चोट नहीं मिला और न ही शरीर पर चोट थे।  मृतक-संजय की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं मिली है । यह गवाह  एमएलसी रिपोर्ट  में है और उसके अनुसार, चोट मृतक पर पाया गया । संजय की मौत  ऊँचाई से कठोर ज़मीन पर गिरने से हो सकती है।  यह सबूतों से अलग है रिकार्ड से यह भी सिद्ध है कि घटना दिनांक को मृतक-मोहन लाल  बंदे शराब के नशे में लड़कियों की तस्वीरें खींच रहा था और शादी समारोह में मौजूद महिलाएं, जिसके कारण झगड़ा हो गया ।  यदि अभियोजन के मामले को वैसे ही लिया जाए, तो संदेह, चाहे वह कितना भी मजबूत क्यों न हो, निर्णायक साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकता। ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों की विस्तृत चर्चा की है। अभियोजन और अभियोजन पक्ष के नेतृत्व में पूरे साक्ष्य का विश्लेषण करने के बाद, इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इसमें बड़े विरोधाभास और चूक हैं उपरोक्त गवाहों के बयान, क्योंकि उन्होंने अपने संस्करण को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है । एक बाद के विचार के रूप में और एक दूसरे और दूसरों के साथ पुष्टि न करें अभियोजन पक्ष के गवाहों और एफआईआर की स्थिति  भी पाई गई है अत्यधिक संदेहास्पद और संपूर्ण साक्ष्यों पर विचार करते हुए, मुकदमा कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष किसी भी आरोप को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है । इसके साथ कोर्ट ने शासन की अपील को खारिज किया है।

kamlesh Sharma

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