अदालत सुस्त व अकर्मण्य लोगों की सहायता नहीं कर सकता-हाईकोर्ट
बिलासपुर। उच्च न्यायालय अपने विवेक का प्रयोग करते हुए आम तौर पर सुस्त एवं अकर्मण्य लोगों की सहायता नहीं करता । इसके साथ पिता की मौत के 2 वर्ष 8 माह देरी से अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन देने एवं आवेदन अस्वीकार होने पर 5 वर्ष बाद हाईकोर्ट में पेश याचिका को खारिज किया है। कोर्ट ने कहा याचिकाकर्ता को अपने हक के लिए जागरूक होना था।
याचिकाकर्ता ताम्रध्वज यादव का पिता स्वर्गीय पुनाराम यादव जल संसाधन विभाग दुर्ग में वर्क चार्ज इस्टैब्लिशमेंट के तहत वाटरमैन के पद में कार्यरत था। 14 फरवरी 2005 को सेवा के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। पिता की मौत के दो वर्ष 8 माह 16 दिन बाद पुत्र ताम्रध्वज यादव 17 अक्टूबर 2007 को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने के लिए चीफ इंजीनियर जल संसाधन रायपुर के समक्ष आवेदन पेश किया गया था। 10दिसंबर 2009 को सचिव जल संसाधन ने अनुकंपा नियुक्ति के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता- ताम्रध्वज यादव द्बारा आवेदन 2 वर्ष, 8 महीने और 16 दिन बीत जाने के बाद दायर किया गया है। इसके बाद वह अधिकारियों के साथ-साथ कुछ अन्य सार्वजनिक अधिकारियों से संपर्क करता रहा, लेकिन जब कार्यपालन यंत्री तांदुला दुर्ग द्बारा 11.फरवरी 2015 को पत्र जारी किया गया, तो हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस रजनी दुबे की सिगल बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि, याचिकाकर्ता- ताम्रध्वज अपने पिता की मृत्यु के समय नाबालिग था और अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन उसके द्बारा वयस्क होने के तुरंत बाद दायर किया गया था, और इसलिए याचिकाकर्ता- ताम्रध्वज यादव के मामले पर गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाना चाहिए था। हाईकोर्ट ने पक्षों की सुनवाई के बाद कहा कि ,वर्तमान याचिका दिवंगत ताम्रध्वज यादव द्बारा 14 मई 2015 को दायर की गई थी और इस याचिका में उनके द्बारा उक्त विलंब के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। इसी प्रकार याचिकाकर्ता- ताम्रध्वज यादव के 3 अन्य भाई भी थे, जो स्वरोजगार/मजदूर थे और उक्त परिवार के कमाने वाले सदस्य थे और अपने पिता की मृत्यु के समय वयस्क भी थे और वे उक्त समय पर उक्त अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकते थे। इस प्रकार, याचिकाकर्ता द्बारा 2 वर्ष से अधिक की देरी के बाद मामला प्रस्तुत किया गया उक्त आवेदन कानून की दृष्टि में संधारणीय और न्यायोचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत के अनुसार उच्च न्यायालय अपने विवेक का प्रयोग करते हुए आम तौर पर सुस्त व अकर्मण्य लोगों की सहायता नहीं कर सकता है। देर से की गई कार्रवाई से जनता में भ्रम पैदा होने की संभावना है। व्यथित व्यक्ति बिना पर्याप्त कारण के अपनी फुरसत या खुशी से अदालत में जाता है तो इसकी कोर्ट जांच करेगी। कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन देने एवं हाईकोर्ट में विलंब से याचिका पेश करने के लिए याचिकाकर्ता को उत्तरदायी मानते हुए याचिका को खारिज किया है।
याचिकाकर्ता की मौत के बाद उसकी भाभी ने मुकदमा लड़ी
याचिका पेश होने के बाद याचिकाकर्ता की भी मृत्यु हो गई। उसकी मौत के बाद उसकी भाभी मंजू यादव ने विधिक वारिस की हैसियत से मुकदमा लड़ी थी। कोर्ट ने कहा जब पुनीराम यादव की मौत हुई उस समय उसकी पत्नी कांति बाई व बेटे होरीलाल यादव, प्रकाश यादव व संतोष यादव बालिग थ्ो। इनमें से कोई एक अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकता था, लेकिन किसी ने भी आवेदन नहीं दिया। राज्य शासन के सर्कुलर के अनुसार कर्मचारी के मृत्यु के 6 माह के अंदर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करना है।

kamlesh Sharma

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *