अपने से 6 वर्ष छोटे किशोर के साथ भागने वाली महिला 10 वर्ष बाद हाई कोर्ट से मुक्त हुई
00 निचली अदालत ने पॉक्सो एक्ट में सजा सुनाई थी
०० कथित पीड़ित ने बयान में कहा अपनी मर्जी से उसके साथ रहा
बिलासपुर। रायगढ़ जिले की 23 वर्ष की महिला के खिलाफ अपने से 6 वर्ष छोटे नाबालिग किशोर को बहला फुसलाकर अपने साथ ले गई एवं बंधक बनाकर रखी। उसने किशोर से शारीरिक संबंध बनाकर शोषण के आरोप में पुलिस ने धारा 363, 368 एवं बालकों को यौन अपराध से संरक्षण अधिनियम की धारा 6 के तहत जुलाई 2015 में अपराध पंजीबद्ध कर न्यायालय में चालान पेश किया। विचारण न्यायालय ने महिला को पाक्सो की धारा 6 में अजीवन एवं 363,368 में अलग अलग सजा सुनाई। इसके खिलाफ महिला ने 2018 में हाईकोर्ट में अपील पेश की। हाईकोर्ट ने अपील में सुनवाई के दौरान कथित पीड़ित का उम्र 18 वर्ष से कम होने सिर्फ स्कूल के स्थानांतरण प्रमाण पत्र के अलावा अन्य कोई दस्तावेज पेश नहीं होने एवं पीड़ित द्बारा आरोपी के साथ एक से डेढ़ माह रहने व सहमती से संबंध बनाने की बात कही। बस से लौटते समय पुलिस ने उसे बरामद किया था। पीड़ित के उक्त बयान के आधार पर हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार कर महिला को सभी अपराध से मुक्त किया है।
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मामला यह है
रायगढ़ जिला निवासी पीड़ित के पिता ने थाने में रिपोर्ट लिखाई कि उसका 17 वर्षीय पुत्र 3 मई 2015 को अपने बहन के घर गया था। यहां से लौटने के बाद वह 6 मई 2015 को घर से कही चला गया उसके बाद नहीं लौटा। 14 मई 2015 को पुलिस ने अपराध पंजीबद्ब किया था। 29 जुलाई 2015 को पुलिस ने किशोर को महिला से बरामद किया। उचित जाँच के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 368 और भारतीय दंड संहिता की धारा 6 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
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कोर्ट ने जन्म प्रमाण पत्र के संबंध में कहा
स्कूल से जन्म प्रमाण पत्र या मैट्रिकुलेशन या संबंधित परीक्षा बोर्ड द्बारा जारी समकक्ष प्रमाण पत्र को सबसे पहले प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिसके अभाव में निगम या नगर पालिका प्राधिकरण या पंचायत द्बारा जारी जन्म प्रमाण पत्र और उसके बाद ही इन दस्तावेज़ों की गैरमौजूदगी में उम्र का निर्धारण ’’एक ओसिफिकेशन टेस्ट या ’’संबंधित प्राधिकरण, यानी समिति या बोर्ड या न्यायालय के आदेश पर किए गए किसी अन्य नवीनतम चिकित्सा आयु निर्धारण परीक्षण’’ के माध्यम से किया जाना है। वर्तमान मामले में, यह माना जाता है कि केवल एक स्थानांतरण प्रमाण पत्र और जन्म प्रमाण पत्र या मैट्रिकुलेशन या समकक्ष प्रमाण पत्र पर विचार नहीं किया गया था। स्कूल स्थानांतरण प्रमाण पत्र में पीड़िता की जन्म तिथि 11.07.1997 दिखाई गई थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि स्थानांतरण प्रमाण पत्र अभियोजन पक्ष द्बारा नहीं बल्कि अदालत द्बारा बुलाए गए गवाह द्बारा पेश किया गया था।
प्रस्तुत दस्तावेज पर भरोसा करके यह नहीं माना जा सकता था कि अपराध करते समय पीड़ि की 18 साल से कम उम्र का था।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के तीन-न्यायाधीशों की बेंच के माध्यम से, यह माना कि यह साबित करने का बोझ कि कोई व्यक्ति किशोर है (या निर्धारित आयु से कम है) उस व्यक्ति पर है जो इसका दावा कर रहा है। इसके अलावा, उस फैसले में, कोर्ट ने उन दस्तावेजों की पदानुक्रम का संकेत दिया जो वरीयता क्रम में स्वीकार किए जाएंगे। प्रॉसिक्यूशन पीड़ित की उम्र साबित करने के लिए कोई भी पक्का या कानूनी तौर पर मान्य सबूत पेश करने में पूरी तरह नाकाम रहा है।
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पीड़ित ने मर्जी से साथ जाने की बात कही
पीड़ित के बयान और घटना के दौरान और उसके बाद उसके व्यवहार को देखते हुए, यह साफ़ है कि वह अपीलकर्ता के काम में सहमत था। वह कहता है कि वह उसके साथ धरमजयगढ़ गया था, दोनों धरमजयगढ़ में 1-1 डेढ़ महीने तक रहे और बस से लौटते समय उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया। प्रॉसिक्यूशन द्बारा हॉस्टाइल घोषित किए जाने के बाद क्रॉस-एग्जामिनेशन में वह मानता है कि वे मजदूरी करके साथ रहने के लिए बिना किसी को बताए घर से भाग गए थे। आरोपी 23 साल का है और पीड़ित अपने बयान मानता है कि उनके बीच संबंध सहमति से बने थे।
