1. बलात्कार पीड़िता की साक्ष्य घायल गवाह के साक्ष्य से भी अधिक विश्वसनीय है-हाई कोर्ट

00 पिता ने ही बेटी की सतीत्व को नष्ट किया

०० न्यायहित में आरोपी की आजीवन कारावास को 20 वर्ष की कैद में बदला गया

बिलासपुर। जस्टिस रजनी दुबे एवं जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने अपनी नाबालिग पुत्री के साथ दुष्कर्म के आरोपी पिता की अपील पर पीड़िता के साक्ष्य को घायल साक्ष्य से भी अधिक विश्वसनीय माना है। हालकि कोर्ट ने आरोपी को ट्रायल कोर्ट से सुनाई गई आजीवन कारावास को अधिक कठोर मानते हुए न्यायहित में 20 वर्ष सश्रम कारावास में बदला है।

14 वर्षीय पीड़िता मां के पिता से अलग रहने पर अपनी बहन व पिता के साथ रहती थी। 5 दिसंबर 2018 की रात खाना खाने के बाद वह पीड़िता अपनी बहन के साथ सोई थी और आरोपी उसी कमरे में अलग सोया था। दोनों बहने गहरी निंद में थी, उसी समय आरोपी उसके कपड़े उतार कर दुष्कर्म किया विरोध करने पर उसने डाट कर चुप करा दिया। सुबह उसने इसकी जानकारी अपनी चाची को दी। चाची ने उसे वहां सोने से मना किया एवं अपने पास सोने के लिए कही किन्तु उसने पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखाई। इसके बाद पीड़िता ने इसकी जानकारी एक अन्य महिला को दी। उसने पीड़िता की मौसी को जानकारी दी एवं घटना के 15 दिन बाद 20 दिसंबर 2018 को रिपोर्ट लिखाई। पुलिस ने मेडिकल जांच एवं पीड़िता व गवाहों के बयान दर्ज कर न्यायालय में धारा 376 व पाक्सो एक्ट के तहत अपराध पंजीबद्ब कर चालान पेश किया। विचारण न्यायालय ने आरोपी को आजीवन कारावास एवं एक लाख रूपये अर्थदंड की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील पेश की थी। अपील में मुख्य रूप से विलंब से रिपोर्ट लिखाने एवं पीड़िता के बयान में विसंगति को आधार बनाया गया था।

जस्टिस रजनी दुबे एवं जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डीबी ने सुनवाई उपरांत अपने आदेश में कहा वर्तमान मामले में पिता पर अपनी एक बेटी के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था, जो उसके साथ रह रही थी, जबकि उसकी पत्नी अलग-अलग रिश्तों के कारण अलग रह रही थी। अभियोक्ता ने अपने पिता के खिलाफ यह आरोप लगाया कि उसने उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए और इस तरह उसका सतीत्व छीना। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार नाबालिग पीड़िता का बयान स्वीकार करने योग्य है, क्योंकि बलात्कार पीड़िता का साक्ष्य घायल गवाह के साक्ष्य से भी अधिक विश्वसनीय है। उसकी गवाही में मामूली विरोधाभास और विसंगतियां महत्वहीन हैं और उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।

इस प्रकार अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्यों को देखने तथा उपरोक्त सिद्धांतों को वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू करने के पश्चात, यह न्यायालय पाता है कि पीड़िता का कथन, जिसकी पुष्टि चिकित्सा साक्ष्यों द्बारा भी पूरी तरह से की गई है, पूर्णत: सत्य है। अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्यों को देखने तथा उपरोक्त

सिद्धांतों को वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू करने के पश्चात, यह न्यायालय पाता है कि पीड़िता का कथन, जिसकी पुष्टि चिकित्सा साक्ष्यों द्बारा भी की गई है, पूर्णत: विश्वसनीय है तथा न्यायालय का विश्वास अर्जित करता है। अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को सभी उचित संदेहों से परे स्थापित करने में सफलता प्राप्त की है तथा इसी प्रकार ट्रायल कोर्ट ने भी इसे समझने में विधिक रूप से वांछनीय दृष्टिकोण अपनाया है। इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट द्बारा अभियुक्त को दोषी ठहराने के दृष्टिकोण में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है।

००सजा के संबंध में, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए खेमचंद रोहरा बनाम सी.जी. राज्य (सुप्रा) के मामले में इस न्यायालय की समन्वय पीठ के निर्णय को देखते हुए तथा इस तथ्य पर भी विचार करते हुए कि निचली अदालत द्बारा लगाई गई सजा बहुत कठोर प्रतीत होती है, यह न्यायसंगत और उचित मानता है तथा न्याय के हित में भी है कि अभियुक्त-अपीलकर्ता पर लगाई गई आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा कर दी जाए।

इस प्रकार अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है, जिसमें दोषसिद्धि को बरकरार रखा जाता है, लेकिन आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा कर दी जाती है। हालांकि, जुर्माने की सजा में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

kamlesh Sharma

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