ट्रेन में पहचान हुई फोन नंबर दिया, व जॉब लगाने बुलाकर दुष्कर्म की, कहानी कानून में स्वीकार नहीं
बिलासपुर। ट्रेन में सफर के दौरान पहचान हुई, मोबाइल नंबर का आदान-प्रदान हुआ, फिर जॉब लगाने के बहाने धरमजयगढ़ बुलाया व जंगल में लेजाकर दुष्कर्म किया। सत्र न्यायालय से आरोपी को दोषमुक्त किये जाने के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने भी पीड़िता की कहानी को कानून में स्वीकार नहीं होने पर खारिज कर दिया।
अभियोजन का मामला संक्षेप में यह है कि कोरबा जिला निवासी पीड़िता कोरबा ब्यूटी पार्लर में काम करती है.। दिसम्बर 2012 के 5-6 महीने पहले ट्रेन से कलकत्ता से आते समय उसकी आरोपी मुलाकात आरोपी से हुई और उसने यह कहकर पीड़ित को अपना मोबाइल नंबर दिया उसे डीबी पावर में 10,000 रुपये प्रति वेतन पर नौकरी दिला देगा। कभी-कभी उससे बात होती थी। 03.12 2012 को आरोपी ने पीड़िता को फोन कर जॉब लगी है कह कर धर्मजयगढ़ बुलाया। जिस पर बस से दिनांक 07.12.2012 को पीड़िता धर्मजयगढ़ पहुंची ।आरोपी उसे होटल ले गया। आगे यह भी आरोप लगाया गया है कि आरोपी ने डीबी पावर कंपनी दिखाने के बहाने पीड़िता को मोटरसाइकिल से जंगल की ओर गई जहां उसने जबरदस्ती उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और ऐसा करने पर जान से मारने की धमकी भी दी।
इसके बाद आरोपी ने पीड़िता को धरमजयगढ़ बस स्टैंड तक छोड़ दिया और फिर कहा कि नहीं घटना को किसी के सामने प्रकट नहीं करना। इसके बाद पीड़िता ने मामले की जानकारी दी घटना उसके रिश्तेदार .को टेलीफोन पर दी। उसके बाद धर्मजयगढ़ थाने में सूचना दी। रिपोर्ट पर आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई ।पीड़िता का सहमति पत्र प्राप्त किया गया और
चिकित्सीय परीक्षण के लिए भेजा गया। पीड़ित की जांच की और कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं देखी पीड़िता के व्यक्तित्व के बारे में और उसकी एमएलसी रिपोर्ट माध्यम से दी। आरोपी की मोटरसाइकिल और कपड़े जब्त कर रासायनिक जांच के लिए लेख एफएसएल के लिये भेजा गया, लेकिन कोई एफएसएल रिपोर्ट नहीं आई । मामले की रायगढ़ा सत्र न्यायालय में सुनवाई हुई। गवाहों के प्रतिपरीक्षण में पीड़िता ने किस बस से धर्मजयगढ़ गई, किस होटल में रुकी व बस का टिकट पेश नहीं की। सत्र न्यायालय ने पीड़िता व गवाहों के बयान में भिन्नता पाया इस आधार पर आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। आरोपी के दोषमुक्ति के खिलाफ पीड़िता ने हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। हाई कोर्ट ने विभिन्न न्यायदृष्टांत का उदाहरण देते हुए पीड़िता की कहानी कानून में स्वीकार नहीं होने पर खारिज कर सत्र न्यायालय के आदेश को यथावत रखा है।
